ढलता सूरज, सुहानी साँझ और सागर का किनारा
पागल हवा ने किया जब दिलकश इशारा
उसके तसव्वुर में, मैं खो सा गया
तन्हाई में एक आरजू जगी ऐसी
न जाने कब मै किसी का हो सा गया
सूरज की लालिमा फिर पानी में घुलने लगी
उल्फत की बंदिशें फिर खुलने लगी
दिल की अंजुमन फिर जमने लगी
धड़कने तेज हुईं, सांसे थमने लगी
जब उसके बाँहों का हर मुझे मयस्सर हुआ
पा गया मैं दुनिया की सारी ख़ुशी,
दीवानगी का कुछ ऐसा असर हुआ
तभी एक लहर ने पयाम ये दिया
इक पल पहले की ज़िन्दगी मैं भ्रम में जिया
फिर हकीकत से हुआ दीदार मेरा
वहां न थी सुहानी चांदनी, बस पसरा था गहरा अँधेरा
वहां न थी वह ख्वाबों की दिलरुबा
जिसकी तसव्वुर में मै था डूबा
वहा तो था मेरी तन्हाई का नजारा
बस मै, साँझ और किनारा...
2 comments:
Bahut sundar Rachna...
bahut accha likha aapne...
main,saanjh aur kinara...
एक टिप्पणी भेजें