ये चाहत थी दिल की
या प्यार का पागलपन
तनहाइयाँ थी, रुशवाइयां थीं
पर सुना न था दिल का अंजुमन
जब तुम न थे,
तब भी थे सिर्फ तुम,
जब तुम थे तब भी थे,
सिर्फ तुम,
अब तुम नहीं हो,
लेकिन फिर भी हो
सिर्फ तुम !
मैंने तो हर एक खता का इकरार किया
खुद से ज्यादा तुम पर ऐतबार किया
पर फिर भी क्यूँ न हो सके तुम मेरे
क्यूँ मिली मुझे तुम्हारी बेरुखी,
और गम के अँधेरे,
मेरी चाहत तो कुछ ज्यादा न थी,
मैंने तो सिर्फ चाहा, तुम मेरा साथ दो
मेरे हांथों में तुम, खुद अपना हाथ दो !
करो मुझे शिकवे गिले
और मैं न कुछ बोलूं
बस बता दो क्या थी मेरी गलती
मै तुम्हारे बाँहों में जी भर कर रोलूं !
अगर है तुम्हे, थोड़ी सी भी फिक्र मेरी
तो रोक लो मुझे, नहीं मै हो जाऊंगा,
तनहाइयों में गुम,
तुम्हारे दिल की तो पता नहीं मुझे
जब तुम न थे,
तब भी थे सिर्फ तुम,
जब तुम थे तब भी थे,
सिर्फ तुम,
अब तुम नहीं हो,
लेकिन फिर भी हो
सिर्फ तुम !
4 comments:
आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (30.04.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.blogspot.com/
चर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
सुन्दर रचना।
mast hai yar ,,,,,,,with best regard
vikas chaudhary
Good Peom
by
Hindi Sahitya
(Publish Your Poems Here)
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