तुमको तो जाना ही होगा,
लेकिन क्या यह भी सोचा है -
दर्द हमारा कौन सहेगा ?
तपते मरुथल में पुरवाई
के झोंके अब क्या आएँगे ?
रुँधे हुए कंठों से कोकिल
गीत मधुर अब क्या गाएँगे ?
तुमको तो गाना ही होगा,
लेकिन क्या यह भी सोचा है -
अब उस लय में कौन बहेगा ?
यह कैसा बसंत आया है ?
हरी दूब में आग लगा दी !
निंदियारे फूलों की खातिर
उफ्! काँटों की सेज बिछा दी !
इसको अपनाना ही होगा,
लेकिन क्या यह भी सोचा है -
आशाओं का महल ढहेगा।
एक बार फिर छला भँवर ने,
डूब गई मदमाती नैया।
एक बार फिर बाज समय का
लील गया है नेह चिरैया।
मन को समझाना ही होगा,
लेकिन क्या यह भी सोचा है -
प्रणय-कथा अब कौन कहेगा ?
शुक्रवार, 11 फ़रवरी 2011
प्रणय-कथा अब कौन कहेगा ? --(गीत)----डॉ. नागेश पांडेय "संजय"
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14 comments:
virah vedna me dubi sundar rachna ...
लाजवाब नागेश जी...बहुत ही सुंदर प्रेम की अभिव्यक्ति....प्रेमी ह्रदय का वेदनामय गीत।
prabhavsali kavita... apna asar chhod rahi hai..
बेहद खूबसूरत प्रस्तुति।
आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (12.02.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.uchcharan.com/
चर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
थाह और प्रवाह का सुन्दर संगम।
बेहद ही सुन्दर। विरह के भावों को बखुबी समेटा है आपने।
लेकिन क्या यह भी सोचा है -
प्रणय-कथा अब कौन कहेगा ?....
सुन्दर और भावपूर्ण गीत । बधाई।
एक-एक शब्द भावपूर्ण ..... बहुत सुन्दर...
गहरी संवेदनशील रचना .
बहुत सुंदर प्रस्तुति
bhawbhinee.
तुमको तो जाना ही होगा,
लेकिन क्या यह भी सोचा है -
दर्द हमारा कौन सहेगा ?
प्रणय-कथा अब कौन कहेगा ?
बहुत अच्छी रचना है ।
वेदना की सुन्दर अभिव्यक्ति
आज अचानक अपनी यह रचना और विद्वानों की सुन्दर टिप्पणियां देखीं, इस स्नेहिल प्रोत्साहन के लिए मैं आप सभी का आभारी हूँ.
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