मेरी इच्छा के बन दीप,
हर पल,हर क्षण तुम जलते रहो,
निशदिन प्रगति के पथ पर,
अनवरत तुम चलते रहो।
इतनी शक्ति दे ईश्वर,
एक दिन जाओ दुनिया को जीत।
मेरी इच्छा के बन दीप।
सारी खुशीयाँ कदमों को चूमे,
जीवन में हर पल आनंद झूमे।
कभी भी ना तुम रहो उदास,
ईश्वर में रखो सदा विश्वास।
बुरे दिनों में तुम्हे राह दिखाए,
मेरी मुस्कुराहटों का हर गीत।
मेरी इच्छा के बन दीप।
आकांक्षाओं को मेरे दो नया स्वरुप,
आती जाती रहती है,
जीवन में छावँ धूप।
इक नया आसमां बनाओ,
इक नई धरती का ख्वाब सजाओ।
सूरज सा दमको क्षीतिज पर हर दिन,
बनो दुखियारों के तुम मीत।
मेरी इच्छा के बन दीप।
शाश्वत सत्य ज्ञान को सीखो,
विकास के इतिहास को लिखो,
महापुरुष सी छवि हो तुममे,
हो तेज,सत्य,बल और विज्ञान।
स्वर्णाक्षरों में हो अंकित जो,
प्रेम सुधा से मोहित हर प्रीत।
मेरी इच्छा के बन दीप।
मेरा बचपन,मेरी जवानी,
तुममे देखु अपनी बीती कहानी,
हर ख्वाब जो था मेरे जीवन में अधूरा,
तुम कर दो सब को पूरा पूरा।
संवेदना और भावना के मोती,
चुन लो सागर से भावों का सीप।
मेरी इच्छा के बन दीप।
जब हो मेरे जीवन का अवसान,
साँस थमे और निकलने को हो प्राण,
मुझमे आत्म रुप दीप तु जल,
मन के तम को तु दूर कर।
प्रज्जवलित मुझमे तु चिर काल से,
चिर काल तक निभाना हर रीत।
मेरी इच्छा के बन दीप।
हर पल,हर क्षण तुम जलते रहो,
निशदिन प्रगति के पथ पर,
अनवरत तुम चलते रहो।
इतनी शक्ति दे ईश्वर,
एक दिन जाओ दुनिया को जीत।
मेरी इच्छा के बन दीप।
सारी खुशीयाँ कदमों को चूमे,
जीवन में हर पल आनंद झूमे।
कभी भी ना तुम रहो उदास,
ईश्वर में रखो सदा विश्वास।
बुरे दिनों में तुम्हे राह दिखाए,
मेरी मुस्कुराहटों का हर गीत।
मेरी इच्छा के बन दीप।
आकांक्षाओं को मेरे दो नया स्वरुप,
आती जाती रहती है,
जीवन में छावँ धूप।
इक नया आसमां बनाओ,
इक नई धरती का ख्वाब सजाओ।
सूरज सा दमको क्षीतिज पर हर दिन,
बनो दुखियारों के तुम मीत।
मेरी इच्छा के बन दीप।
शाश्वत सत्य ज्ञान को सीखो,
विकास के इतिहास को लिखो,
महापुरुष सी छवि हो तुममे,
हो तेज,सत्य,बल और विज्ञान।
स्वर्णाक्षरों में हो अंकित जो,
प्रेम सुधा से मोहित हर प्रीत।
मेरी इच्छा के बन दीप।
मेरा बचपन,मेरी जवानी,
तुममे देखु अपनी बीती कहानी,
हर ख्वाब जो था मेरे जीवन में अधूरा,
तुम कर दो सब को पूरा पूरा।
संवेदना और भावना के मोती,
चुन लो सागर से भावों का सीप।
मेरी इच्छा के बन दीप।
जब हो मेरे जीवन का अवसान,
साँस थमे और निकलने को हो प्राण,
मुझमे आत्म रुप दीप तु जल,
मन के तम को तु दूर कर।
प्रज्जवलित मुझमे तु चिर काल से,
चिर काल तक निभाना हर रीत।
मेरी इच्छा के बन दीप।
5 comments:
माँ के आशीष सी पावन-
सुंदर रचना .
सुन्दर भावपूर्ण प्रेरक प्रस्तुति..
sundar rachana
भाई जी सच में आपकी यह कविता "सत्यम शिवम् सुन्दरम" की तरफ हमारा ध्यान पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ आकर्षित करती है ...आप यूँ ही अनवरत रचना कर्म में रत रहें यही कामना है ...आपका आभार
बेहतरीन अभिव्यक्ति।
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