मौन मेरा स्नेह अब भी,
जो दिया,तुमसे लिया मै।
प्यार मेरा चुप है अब भी,
क्यों किया,जो है किया मै।
भूल से हुई इक खता,
मैने रुलाया खुब तुमको,
खुद भी रोया,
कह ना पाया,
नैना मेरे ढ़ुँढ़े उनको।
तुम कही हो,मै कही हूँ,
तुम ना मेरी,मै नहीं हूँ।
पर है वैसा ही सुहाना,
प्यार का मौसम तो अब भी।
साथ तेरा छोड़ दामन,
प्यार का बंधन छुड़ाया,
रुठ चुकी है खुशियाँ अपनी,
प्यार हमारा लुट न पाया।
ख्वाबों में फिर हर रात ही,
न जाने क्यों आती हो तुम तो अब भी।
राहे मुझसे पुछती है,
है कहा तेरा वो अपना,
साथ जिसके रोज था तु,
खो गया क्यों बन के सपना।
तु गया है भूल या उसने ही दामन है चुराया,
पर मेरे जेहन में वैसी ही,
कुछ प्यारी यादें सीमटी है अब भी।
माना है मैने कि तुम हो दूर मेरे,
दूर हो के पास हो तुम साथ मेरे।
मै तुम्हे अब देखता हूँ आसमां में,
चाँद में,तारों में,
हर जगह जहा में।
सब में बस तेरी ही तस्वीर दिखती,
हर तस्वीर तुम्हारी है ये पूछती।
मै नहीं तेरी प्रिया कर ना भरोसा,
दूर रह वरना तु खायेगा फिर धोखा,
मै उन्हें बस ये ही कह के टालता हूँ,
साये से तेरा अपना वजूद निकालता हूँ।
कोई ना जाने किसी को क्या पता है?
मेरे दिल के घर में तो तुम हो अब भी।
बीती हुई हर बात में,
अपनी सभी मुलाकात में,
थे चंद सपने जो थे जोड़े तेरे मेरे साथ ने।
उन चाँदनी हर रात में,
भींगी हुई बरसात में,
मेरे आज में और कल में,
दबी दबी सी जिक्र तुम्हारी,
एहसास दिलाती तुम हो अब भी..........
जो दिया,तुमसे लिया मै।
प्यार मेरा चुप है अब भी,
क्यों किया,जो है किया मै।
भूल से हुई इक खता,
मैने रुलाया खुब तुमको,
खुद भी रोया,
कह ना पाया,
नैना मेरे ढ़ुँढ़े उनको।
तुम कही हो,मै कही हूँ,
तुम ना मेरी,मै नहीं हूँ।
पर है वैसा ही सुहाना,
प्यार का मौसम तो अब भी।
साथ तेरा छोड़ दामन,
प्यार का बंधन छुड़ाया,
रुठ चुकी है खुशियाँ अपनी,
प्यार हमारा लुट न पाया।
ख्वाबों में फिर हर रात ही,
न जाने क्यों आती हो तुम तो अब भी।
राहे मुझसे पुछती है,
है कहा तेरा वो अपना,
साथ जिसके रोज था तु,
खो गया क्यों बन के सपना।
तु गया है भूल या उसने ही दामन है चुराया,
पर मेरे जेहन में वैसी ही,
कुछ प्यारी यादें सीमटी है अब भी।
माना है मैने कि तुम हो दूर मेरे,
दूर हो के पास हो तुम साथ मेरे।
मै तुम्हे अब देखता हूँ आसमां में,
चाँद में,तारों में,
हर जगह जहा में।
सब में बस तेरी ही तस्वीर दिखती,
हर तस्वीर तुम्हारी है ये पूछती।
मै नहीं तेरी प्रिया कर ना भरोसा,
दूर रह वरना तु खायेगा फिर धोखा,
मै उन्हें बस ये ही कह के टालता हूँ,
साये से तेरा अपना वजूद निकालता हूँ।
कोई ना जाने किसी को क्या पता है?
मेरे दिल के घर में तो तुम हो अब भी।
बीती हुई हर बात में,
अपनी सभी मुलाकात में,
थे चंद सपने जो थे जोड़े तेरे मेरे साथ ने।
उन चाँदनी हर रात में,
भींगी हुई बरसात में,
मेरे आज में और कल में,
दबी दबी सी जिक्र तुम्हारी,
एहसास दिलाती तुम हो अब भी..........
6 comments:
मन की व्यथा और विश्वास से परिपूर्ण बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति..
प्रवाहपूर्ण पदों द्वारा आत्माभिव्यक्ति बहुत अच्छी लगी।
इस मखमली अभिव्यक्ति का तो जवाब नही इंजीनियर साहिब!
बहुत सुन्दर रचना!
भाई सत्यम शिवम, नमस्कार| आप की प्रस्तुतियाँ पहले भी पढ़ी हैं, काफ़ी प्रभावित करती हैं| मेरी तरह और भी कई साहित्य प्रेमियों को काफ़ी आशाएँ हैं आप से| बस इसी लिहाज से इस बार कुछ कहना चाहता हूँ:-
नैन मेरा ढूँढे उनको
शायद यूँ होना चाहिए:- नैना मेरे ढूँढें उनको
आशा करता हूँ, आप अपने भाई की बात को अन्यथा नहीं लेंगे|
बहरहाल मनोभावों को खुल कर व्यक्त करती भाव प्रवण रचना प्रस्तुत करने के लिए बधाई बन्धुवर|
@navin ji,ye mere liye saubhagy ki baat hai ki aaplog humesa margdarshan karte hai,mai jarur aapke kehne par use thik kar lunga..aap yuhi humesa mera margdarshan kare..bhut bhut dhanyawaad.
bahut achha
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