दुनिया के कोलाहल से दूर
चारों तरफ़ फैली है शांति ही शांति
वीरान होकर भी आबाद है जो
अपने कहलाने वालों के अहसास से दूर है जो
नीरसता ही नीरसता है उस ओर
फिर भी मिलता है सुकून उस ओर
ले चल ऐ खुदा मुझे वहां
दुनिया के लिए कहलाता है जो शमशान यहाँ
शनिवार, 21 अगस्त 2010
शमशान-----{कविता}----- वंदना गुप्ता
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1 comments:
अपने कहलाने वालों के अहसास से दूर है जो
नीरसता ही नीरसता है उस ओर
कहाँ इससे जल्दि छुटकारा मिल पाता है । सच को बयां करती अच्छी रचना ।
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