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रविवार, 11 जुलाई 2010

तन्हा-तन्हा आसमान क्यूँ है {गजल} सन्तोष कुमार "प्यासा"

हम खुद से अनजान क्यूँ है
ज़िन्दगी मौत की मेहमान क्यूँ है

जिस जगह लगते थे खुशियों के मेले

आज वहां दहशतें वीरान क्यूँ है

जल उठता था जिनका लहू हमें देख कर

न जाने आज वो हम पर मेहेरबान क्यूँ है

जहाँ सूखा करती थी कभी फसले

वहां लाशों के खलिहान क्यूँ है

कभी गूंजा करती थी घरों में बच्चों की किलकारियां

अब न जाने खुशियों से खाली मकान क्यूँ है

आखिर कौन कर सकता है किसीकी तन्हाई को दूर

सूरज,चाँद और हजारों तारें है मगर

तन्हा-तन्हा आसमान क्यों है....

1 comments:

Mithilesh dubey ने कहा…

लाजवाब गजल लगी संतोष जी बहुत-बहुत बधाई आपको