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मंगलवार, 4 मई 2010

लहर---------[कविता]----------सन्तोष कुमार "प्यासा"

तुम्हे याद है हम दोनों पहले यहाँ आते थे



घंटो रेत पर बैठ कर


एक दुसरे की बातों में खो जाते थे


तुम घुटनों तक उतर जाती थी सागर के पानी में



और मै किनारे खड़ा तुम्हे देखता था



पहले तो तुम बहुत चंचल थी



लेकिन अब क्यों हो गई हो



समुद्र की गहराई की तरह शांत


और मै बेकल जैसे समुद्र में उठती लहर

4 comments:

श्यामल सुमन ने कहा…

समय के संग में प्यार की लहरें होतीं शांत।
प्यासा है संतोष जब सुमन हृदय है क्लान्त।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com

Dr. C S Changeriya ने कहा…

bahut bahut badhai

shekhar kumawat

वाणी गीत ने कहा…

तुम अब हो गयी हो समुद्र की गहराई की तरह शांत
और मै बेकल जैसे समुद्र में उठती लहर...
बेचैनी ने स्थान - परिवर्तन कर लिया है ....
बदलते मिज़ाज पर अच्छी कविता ...

जय हिन्दू जय भारत ने कहा…

तुम्हे याद है हम दोनों पहले यहाँ आते थे



घंटो रेत पर बैठ कर


एक दुसरे की बातों में खो जाते थे


तुम घुटनों तक उतर जाती थी सागर के पानी में



और मै किनारे खड़ा तुम्हे देखता था

bahut acchi laine lagi ...