उसके सपने है कुछ ऐसे,
मुट्ठी में सिमटे, हथेली पे बिखरे,
थोड़े से कच्चे, छोटे छोटे बच्चे,
बिल्कुल सच्चे, कितने अच्छे।
उसके सपने है कुछ ऐसे,
है छोटा सा कद, आसमा का तलब,
नन्हे से पावँ, नैनों में जलद,
बिखरे से है लट, मुख पे है ये रट,
उसे बनना है सब से ही अलग।
उसके सपने है कुछ ऐसे,
सरवर की डगर, छोटा सा है घर,
पनघट का सफर, हैरान सा पहर,
दुर्गम है जहान, उस पार वहाँ,
पर मँजिल का निशा, बयाँ करता है उसका हौसला।
उसके सपने है कुछ ऐसे,
अट्टालिका से गिरी, खिड़की पे अड़ी,
छोटी सी है वो, पर ख्वाब है बड़ी बड़ी,
अनजान, नादान, अकेली है राहों में,
फिर भी समेटना चाहती है,
दुनिया को अपनी बाहों में।
उसके सपने है कुछ ऐसे,
नाजुक, सुकुमार, कोमल है तन,
निश्छल, पवित्र, निर्मल है मन,
नैनों में चाहत है, पाले है सपने,
सब के लिए, सब है उसके अपने।
बस कारवाँ की राहों में,
उसका वजूद थोड़ा छोटा है,
पर मँजिल को पाने की ललक,
हर परावँ से मोटा है।
उसके सपने है कुछ ऐसे,
8 comments:
बाल मन पर बहुत खूबसूरत कविता है ....
bal-man ke sapnon ko shabdon me bahut hi komalta ke sath prastut kiya hai aapne .badhai .
वाह!जब तक बाल मन रहता है सपनो की उडान ऐसी ही तो होती है…………उन भावो को बहुत खूबसूरत शब्दो मे ढाला है।
बच्चों का प्यारा मन।
नाजुक, सुकुमार, कोमल है तन,
निश्छल, पवित्र, निर्मल है मन,
नैनों में चाहत है, पाले है सपने,
सब के लिए, सब है उसके अपने ...
सपनो की उड़ान को शब्दों में बाँध दिया है आपने ... लाजवाब ..
nice poem
thnks to all of u.
इक उड़ान ही सपनों को ज़िन्दगी देगी.. रोको ना, छोड़ दो उसे..
सुन्दर और बच्चों के मन जैसी निश्छल कविता.. बढ़िया लगी..
आभार
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