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रविवार, 28 नवंबर 2010

क्षणिकाएं -----------(डा० ऋतु वार्ष्णेय )

क्षणिकाएं


(1) तुम कौन हो ?
एक पल
एक मौन
एक विश्वास
एक एहसास
या
सिर्फ छल ।


(2)आज शोर अनबना सा है
जैसे कुछ अनकहा सा है
कुछ शांत
कुछ मौन
सब शुन्य है .


(3) छोटा सा सत्य
अवचेतन मन का
छोटा सा सत्य
जो रेशे में कैद
समय की धारा में
संभावना की धुरी पर
टिककर
अपने अर्थ रचने का
उपक्रम करता हुआ
एकाएक
आकाश की सीमा भेद
उसे छुने की
क्षमता रखता है ।

8 comments:

Mithilesh dubey ने कहा…

बहुत ही भावमयी रचना , बधाई आपको ।

vandana gupta ने कहा…

आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (29/11/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

अच्छी प्रस्तुति

shikha varshney ने कहा…

अच्छी रचना.

Manav Mehta 'मन' ने कहा…

बेहद भावपूर्ण अभिव्यक्ति.........

http://saaransh-ek-ant.blogspot.com

अनुपमा पाठक ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति!

ritu ने कहा…

thanyavad

Vijay Koomar Arora ने कहा…

Excellent views