जाने क्या है जाने क्या नही
बहुत है मगर फिर भी कुछ नही
तुम हो मै हू और ये धरा
फिर भी जी है भरा भरा
कभी जो सोचू तो ये पाऊ
मन है बावरा कैसे समझाऊ
कि न मैं हू न हो तुम
बस कुछ है तन्हा सा गुम.......................!!
मंगलवार, 10 अगस्त 2010
कभी सोचती हू...........(कविता)................ सुमन 'मीत'
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4 comments:
dil ki bhavnayen achi tarah se sjaya hai aapne ...
बहुत खूब .पसंद आई आपकी यह रचना
bahut khub suman ji, aachi abhivakti di aapne
सुन्दर....
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