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बुधवार, 25 अगस्त 2010

कभी-कभी सोचती हू.....(कविता)--सुमन 'मीत

जाने क्या है जाने क्या नही


बहुत है मगर फिर भी कुछ नही


तुम हो मै हू और ये धरा


फिर भी जी है भरा भरा


कभी जो सोचू तो ये पाऊ


मन है बावरा कैसे समझाऊ


कि न मैं हू न हो तुम


बस कुछ है तन्हा सा गुम.......................!

3 comments:

Urmi ने कहा…

तुम हो मै हू और ये धरा
फिर भी जी है भरा भरा..
वाह वाह बहुत सुन्दर!

Mithilesh dubey ने कहा…

सुन्दर अभिव्यक्ति लगी, बधाई ।

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

तन्हाई ऐसी ही होती है...
सुंदर रचना.