होगी तलाशे इत्र ये मछली बज़ार में
निकले तलाशने जो वफ़ा आप प्यार में
चल तो रहा है फिर भी मुझे ये गुमाँ हुआ
थम सा गया है वक्त तेरे इन्तजार में
जब भी तुम्हारी याद ने हौले से आ छुआ
कुछ राग छिड़ गये मेरे मन के सितार में
किस्मत कभी तो पलटेंगे नेता गरीब की
कितनों की उम्र कट गयी इस एतबार में
दुश्वारियां हयात की सब भूल भाल कर
मुमकिन नहीं है डूबना तेरे खुमार में
ये तितलियों के रक्स ये महकी हुई हवा
लगता है तुम भी साथ हो अबके बहार में
वो जानते हैं खेल में होता है लुत्फ़ क्या
जिनको न कोई फर्क हुआ जीत हार में
अपनी तरफ से भी सदा पड़ताल कीजिये
यूँ ही यकीं करें न किसी इश्तिहार में
'नीरज' किसी के वास्ते खुद को निसार कर
खोया हुआ है किसलिये तू इफ्तिखार में
इफ्तिखार= मान, कीर्ति, विशिष्ठता, ख्य
शुक्रवार, 6 अगस्त 2010
थम सा गया है वक्त....(गजल)...................नीरज गोस्वामी
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6 comments:
niraj ji ap ki gjal me sare bhaw maujud hai kevl etna hi khna hai ki
jo na miksake uska afsos nahi jo pass hai usi ki kumari me jilene de niraj
किस्मत कभी तो पलटेंगे नेता गरीब की
कितनों की उम्र कट गयी इस एतबार में
गजल बहुत ही बढिया लगी, खासकर आपकी ये लाईंन बहुत ही सच्ची लगी ।
bahut khub ..shandaar gazal
आपकी रचना पढ़ कर मन गदगद हो गया।
विशेष कर .......लाजवाब शेर......
किस्मत कभी तो पलटेंगे नेता गरीब की
कितनों की उम्र कट गयी इस एतबार में
.........................
अपनी तरफ से भी सदा पड़ताल कीजिये
यूँ ही यकीं करें न किसी इश्तिहार में
सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी
होगी तलाशे इत्र ये मछली बज़ार में
निकले तलाशने जो वफ़ा आप प्यार में
वाह …………………नीरज जी की यही तो खूबी है जब भी लिखते हैं सीधा दिल मे उतर जाता है…………ेक बार फिर शानदार गज़ल्।
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति..................
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