माफ़ कर दो आज देर हो गई आने में
वक़्त लग जाता है अपनों को समझाने में।
किरण के संग संग ज़माना उठ जाता है
.देखना पड़ता है मौका छुप के आने में ।
रूठ के ख़ुद को नहीं ,मुझको सजा देते हो
क्या मज़ा आता है यूं मुझको तड़पाने में ।
एक लम्हे में कोई भी बात बिगड़ जाती है
उम्र कट जाती है उलझन कोई सुलझाने में ।
तेरी ख़ुशबू से मेरे जिस्म "ओ"जान नशे में हैं
"दीपक" जाए भला फिर क्यों किसी मयखाने में ।
बुधवार, 21 जुलाई 2010
गजल.........................दीपक शर्मा
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8 comments:
bahut achchhi kavita padhaya aapne...........keep it up
इन्हे प्रोत्साहन देना चाहिये लेकिन और मेहनत ज़रूरी है ।
सुंदर ग़ज़ल...
बड़ी सुन्दर प्रस्तुति।
bahut hi shandaar gazal sir ji badahai
prabhat ji
kavi deepak sharma ko zara gaur se paden.yeh adab ke jana pahchana naam hai.aap inhe protsahan dene ki baat kar rahe hain???sahitya me jinka naam adab se liya jata hai.tippani aadmi ka qad dekhkar ki jati hai.
ye mere pasdinda shaayar hain isliye likh raha hoon
aaditiya
ek ek sher wazni hai.kam alfaz me poori baat.kiya baat hain deepak sahib.hum to aapke waise bhi murid hain.aapki nazm ka koi sani nahi aaj hindustaan me.mashaallah
रूठ के ख़ुद को नहीं ,मुझको सजा देते हो
क्या मज़ा आता है यूं मुझको तड़पाने में ।
एक लम्हे में कोई भी बात बिगड़ जाती है
उम्र कट जाती है उलझन कोई सुलझाने में ।
behtarin
salim
khayal ke aitbar se gazal thik hai
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