दो अश्रु
एक अश्रु मेरा
एक तुम्हारा
ठहर कर कोरों पर
कर रहे प्रतीक्षा
बहने की
एक साथ
रात
पिघलती जाती है
क़तरा क़तरा
सोना बन कर निखरने को,
कसमसाती है
ज़र्रा ज़र्रा
फूल बन कर खिलने को,
हर रोज़
रात
दो बातें
दो बातें,
एक चुप
एक मौन
कर रहे इंतज़ार
एक कहानी बनने की
अजनबी
चलो फिर बन जायें अजनबी
एक नये अनजाने रिश्ते में
बँध जायें फिर,
नया जन्म लेने को
सप्तऋषि
जुड़ते हैं रोज़
कई कई सितारे
बनाने एक सप्तऋषि
हर रात
हमारे बिछड़ने के बाद
बुधवार, 12 मई 2010
कुछ क्षणिकाएं..........मनोशी जी
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11 comments:
दो बातें,
एक चुप
एक मौन
कर रहे इंतज़ार
एक कहानी बनने की
bahut hi sundar manoshi ...ek ek chhadika dil tak utar gayi ..hardik badhai
ज्ञानदत्त जी से जलने वालों! जलो मत, बराबरी करो. देखिए
सभी क्षणिकाएं. बहुत हि खूबसूरत है ।।।
manoshi ji ...bahut hi sundar lagi aap ki prastuti
padhkar accha laga ..badhai
सभी क्षणिकाएं लाजवाब लगीं ।
शब्द विहीन हूँ ...बहुत ही सुन्दर ..
har ak me pure bhav hai
hindisahityamanch@gmail.com
बढ़िया!
एक विनम्र अपील:
कृपया किसी के प्रति कोई गलत धारणा न बनायें.
शायद लेखक की कुछ मजबूरियाँ होंगी, उन्हें क्षमा करते हुए अपने आसपास इस वजह से उठ रहे विवादों को नजर अंदाज कर निस्वार्थ हिन्दी की सेवा करते रहें, यही समय की मांग है.
हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार में आपका योगदान अनुकरणीय है, साधुवाद एवं अनेक शुभकामनाएँ.
-समीर लाल ’समीर’
सभी क्षणिकाएं बहुत ही खूबसूरत हैं………………हर एक में भाव कूट कूट कर भरे हैं।
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