वातानुकूलित कक्ष में
बैठ कर
तुम करते हो फैसले
उन जिंदगियों के
जिनकी किस्मत में
बदबूदार बस्तियां हैं
कर देते हो
हस्ताक्षर
उन्हें ढहाने के
जिनकी ज़िन्दगी में
केवल झोपड़ - पट्टियाँ हैं.
क्यों कि
तुम्हारी नज़र में
शहर को सुन्दर बनाना
ज़रूरी है
पर ये
झुग्गी - झोपडियां
उनकी मजबूरी है.
मन और कक्ष तुम
सदैव बंद रखते हो
इसीलिए तुम
ऐसे फैसले कर देते हो
ज़रा अपने
मन और कमरे के
गवाक्षों को खोलो
और उनकी ज़िन्दगी के
गवाह बनो .
जिस दिन तुम
उनकी ज़िन्दगी
जान जाओगे
अपने फैसले पर
पछताओगे .
कलम तुम्हारा
रुक जायेगा
मन तुम्हारा
पीडा से
भर जायेगा
और खुद के किये
हस्ताक्षर पर
तुम्हारा ह्रदय
धिक्कार कर रह जाएगा ....
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गुरुवार, 27 मई 2010
हस्ताक्षर .......(कविता).......संगीता स्वरुप
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15 comments:
संगीता जी यहाँ आकर अच्छा लगा. एक सुझाव था कि ले आउट में कुछ कलर हल्के है जबकी पीछे का रंग भी हल्का है. थोड़ा सा पढ़ने दिक्कत होती है. अच्छा कर लेंगे तो सभी को सुविधा हो जायेगी.
सादर,
माणिक
आकाशवाणी ,स्पिक मैके और अध्यापन से जुड़ाव
अपनी माटी
माणिकनामा
Kavitaa bejubaan logo kee kahaani bakhubi kahatee hai.
माणिक जी,
आपको कविता अच्छी लगी...यही मेरे लिए प्रोत्साहन है...ये ब्लॉग मेरा नहीं है...यह हिन्दीसाहित्य मंच है...रंग आदि ब्लॉग चलाने वाले ही कर सकते हैं ..
शुक्रिया सुझाव के लिए भी और सराहना के लिए भी
waah bahut sundar kavita achcha sandesh diya...
kavita samaj ke sach ko dikha rahi hai ....saral shabdon me shandaar kavita ...bahut bahut dhanyavaad
sangeeta ji marm asparshi rchan ke liye aapka aabhra ...
bahut hi sunadr kavita dard ko ukerti hui ...badhai
संगीता जी ,,आपकी लेखनी का जवाब नहीं ..जिस भी बिंदु पर लिखती है पूरी तन्मयता से ...कविता को साकार रूप दिया है .बधाई .
smaaj ki sachchai ujagar karti behtareen kavita..
sach ko ukerti apki rachna bahut acchhi lagi aur kash ki sacchayi jaan kar bhi vatanukulit kamro me baithe logo k dimag ki khidkiya khul paaye aur sahi faisle le paye.
---कविता तो मर्मस्पर्शी है ही ,कोई दो राय नही। पर युक्ति-युक्तता से परे; झुग्गी- झौन्पडी में बैठकर कोई निर्णय कहां हो पायेगा, दिमाग ही नहीं चलेगा। क्या आज तक के इतिहास में कोई राजा झुग्गी-झौंपडी में रहा है ,कहीं भी दुनिया में ? बस देखने, शिकायत मिलने पर जांच करने, इनाम बांटने जाया करते हैं।
---झुग्गी-झौंपडियों को हटना ही चाहिये, हां पहले उनके लिये अन्य आवास व्यवस्था की जाय ।
---और यह भी सच है कि झुग्गी-झौंपडी वाले दिये गये आवासों को बेचकर पुनः झुग्गियां बना लेते हैं, इसका क्या करेंगे.
sangeeta ji maine apki kvita pdhi maph kigeye ga pr mujko ap ki kavita me wo dard nahi dikha jiske bare me ap ne likha hai
सभी पाठकों का आभार....
ek sarthak vishya par prashnchinh lagati rahcna........sochne ko vivash karti hai.
सत्य है...सुंदर कविता
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