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मंगलवार, 25 मई 2010

बचपन ************* {कविता} ********* सन्तोष कुमार "प्यासा"

आनंद की लहरों में हिलोरें खाने वाला जीवन


मानव का प्राकृतिक से होता है पहला मिलन

ना गृहस्थी का भार ना जमाने का फिक्र ,

ना खाने कमाने का फिक्र

निश्चिन्तता के आँगन में विचरता है बचपन

प्राकृतिक की गोद में बैठता जब वह  सुकुमार 

पड़ी रहती कदमों में उसके  खुशियाँ अपार

होता है वह अपने बचपन का विक्रम

दूर रहतें है उससे ज़माने के सारे भ्रम

न देता वह ख़ुद को कभी झूठी दिलाशा

ना रहता कभी वह किसी चाहत और खुशी का "प्यासा"
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5 comments:

honesty project democracy ने कहा…

विचारणीय प्रस्तुती और अच्छी रचना /

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत उम्दा!

sandhyagupta ने कहा…

likhte rahiye.

kunwarji's ने कहा…

badhiya rachna.....

kunwar ji,

बेनामी ने कहा…

sundar kavita..