मन सावन
मन सावन मन उमड़ते, अभिलाषाओ के बादल
गिरती जीवन धरा पर, विचारो की बूंदें हर पल
आशाओं की दामिनी कौंधती मन में
सुख दुःख की बदली, करती कोलाहल
परिश्तिथियों की बौछारों से गीले होते जीवन प्रष्ठ
मन के मोर, पपीहे, दादुर , मन सावन में भीगने को बेकल
विचारों की बूंदों से ह्रदय के गढढे उफनाए
आशा-निराशा की सरिता बह चली, तीव्र गति से अविरल
मन सावन मन उमड़ते, अभिलाषाओ के बादल
गिरती जीवन धरा पर, विचारो की बूंदें हर पल
मंगलवार, 11 मई 2010
मन सावन -------------- {कविता} ---------------------- सन्तोष कुमार "प्यासा"
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3 comments:
अति सुन्दर, हमारा मन तो अभी से सावन की बूँदों की कल्पना में खो रहा है।
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कौन हो सकता है चर्चित ब्लॉगर?
पत्नियों को मिले नार्को टेस्ट का अधिकार?
...उमड़ते घुमड़ते मनोभाओं की सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ
bahut hi accha laga padh kar
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