आनंद की लहरों में हिलोरें खाने वाला जीवन
मानव का प्राकृतिक से होता है पहला मिलन
ना गृहस्थी का भार ना जमाने का फिक्र ,
ना खाने कमाने का फिक्र
निश्चिन्तता के आँगन में विचरता है बचपन
प्राकृतिक की गोद में बैठता जब वोह शुकुमार
पड़ी रहती कदमों में उसकी खुशियाँ अपार
होता है वह अपने बचपन का विक्रम
दूर रहतें है उससे ज़माने के सारे भ्रम
न देता वह ख़ुद को कभी झूठी दिलाशा
ना रहता कभी वह किसी चाहत और खुशी का "प्यासा"
रविवार, 2 मई 2010
बचपन
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