दीपक शर्मा जी का जन्म २२ अप्रैल १९७० में चंदौसी जिला मुरादाबाद ( उ.प) में हुआ . दीपक जी ने वस्तु प्रबंधन में परा स्नातक की शिक्षा प्राप्त की है . दीपक जी कारपोरेट जगत में एक प्रबंधक के पद पर आसीन हैं .
दीपक जी की रचनाएँ नज़्म , गीत , ग़ज़ल एवं कविताओं के रूप में शारदा प्रकाशन द्वारा उनकी दो पुस्तकों " फलक दीप्ति " एवं " मंज़र" में प्रकाशित की गई हैं.
पूरा नाम : दीपक शर्मा
+ उपनाम : कवि दीपक शर्मा
+ चित्र : संलग्न है
+ जन्मतिथी ; २२ अप्रैल 1970
+ जन्मस्थान : चंदौसी जिला मुरादाबाद ( उ.प)
+वर्तमान पता : 186,2ND Floor,Sector-5,Vaishali Ghaziabad(U.P.)
+ प्रकाशित पुस्तको और उनके प्रकाशकों के नाम
१. फलक दीप्ति : गीत, ग़ज़ल, नज़्म एवं कविताओं का पहला
मौलिक संग्रह सन २००५ में इंडियन बुक डिपो
( शारदा प्रकाशन ) द्वारा प्रकाशित
२. मंज़र : गीत, ग़ज़ल, नज़्म एवं कविताओं का दूसरा
मौलिक संग्रह सन २००६ में लिट्रेसी हाउस
( शारदा प्रकाशन द्वारा प्रकाशित )
दीपक शर्मा जी हिंदी कवि सम्मलेन और मुशायरों में अनवरत रूप से अपनी रचनाएन प्रस्तुत करते रहते हैं.देश विदेश में पिछले २० सालों से अपनी रचनायों के द्वारा साहित्य की सेवा कर रहे हैं.
गजल
मेरे जेहन में कई बार ये ख्याल आया
की ख्वाब के रंग से तेरी सूरत संवारूँ
इश्क में पुरा डुबो दूँ तेरा हसीन पैकर
हुस्न तेरा निखारू और ज्यादा निखारूँ ।
जुल्फ उलझाऊँ कभी तेरी जुल्फ सुलझाऊँ
कब्भी सिर रखकर दामन में तेरे सो जाऊँ
कभी तेरे गले लगकर बहा दूँ गम अपने
कभी सीने से लिपटकर कहीं खो जाऊँ
कभी तेरी नज़र में उतारूँ मैं ख़ुद को
कभी अपनी नज़र में तेरा चेहरा उतारूँ।
इश्क में पूरा डुबो दूँ तेरा हसीन पैकर
हुस्न तेरा निखारू और ज्यादा निखारूँ ॥
अपने हाथों में तेरा हाथ लिए चलता रहूँ
सुनसान राहों पर, बेमंजिल और बेखबर
भूलकर गम सभी, दर्द तमाम, रंज सभी
डूबा तसव्वुर में बेपरवाह और बेफिक्र
बस तेरा साथ रहे और सफर चलता रहे
सूरज उगता रहे और चाँद निकलता रहे
तेरी साँसों में सिमटकर मेरी सुबह निकले
तेरे साए से लिपटकर मैं रात गुजारूँ
इश्क में पुरा डुबो दूँ हँसीन पैकर
हुस्न तेरा निखारूँ और ज्यादा निखारूँ ॥
मगर ये इक तसव्वुर है मेरी जान - जिगर
महज़ एक ख्वाब और ज्यादा कुछ भी नहीं
हहिकत इतनी तल्ख है की क्या बयाँ करूँ
मेरे पास कहने तलक को अल्फाज़ नहीं ।
कहीं पर दुनिया दिलों को नहीं मिलने देती
कहीं पर दरम्यान आती है कौम की बात
कहीं पर अंगुलियाँ उठाते हैं जग के सरमाये
कहीं पर गैर तो कहीं अपने माँ- बाप ॥
कहीं दुनिया अपने ही रंग दिखाती है
कहीं पर सिक्के बढ़ाते हैं और ज्यादा दूरी
कहीं मिलने नहीं देता है और ज़ोर रुतबे का
कहीं दम तोड़ देती है बेबस मजबूरी ॥
अगर इस ख़्वाब का दुनिया को पता चल जाए
ख़्वाब में भी तुझे ये दिल से न मिलने देगी
कदम से कदम मिलकर चलना तो क़यामत
तुझे क़दमों के निशान पे भी न चलने देगी ।
चलो महबूब चलो , उस दुनिया की जानिब चलें
जहाँ न दिन निकलता हो न रात ढलती हो
जहाँ पर ख्वाब हकीकत में बदलते हों
जहाँ पर सोच इंसान की न जहर उगलती हो ।।
*******************************************************
शनिवार, 24 अप्रैल 2010
गजल ......(परिचय )....कवि दीपक शर्मा
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
8 comments:
मेरे जेहन में कई बार ये ख्याल आया
की ख्वाब के रंग से तेरी सूरत संवारूँ
इश्क में पुरा डुबो दूँ तेरा हसीन पैकर
हुस्न तेरा निखारू और ज्यादा निखारूँ ।
बहुत ही शानदार दीपक जी ..
bahut hi unda gazal har ek sher dil tak utar gya ...
कभी तेरे गले लगकर बहा दूँ गम अपने
कभी सीने से लिपटकर कहीं खो जाऊँ
कभी तेरी नज़र में उतारूँ मैं ख़ुद को
कभी अपनी नज़र में तेरा चेहरा उतारूँ।
wah wah bahut hi acchi lagi ye line ...badhai
कभी तेरे गले लगकर बहा दूँ गम अपने
कभी सीने से लिपटकर कहीं खो जाऊँ
कभी तेरी नज़र में उतारूँ मैं ख़ुद को
कभी अपनी नज़र में तेरा चेहरा उतारूँ।
wah wah bahut hi acchi lagi ye line ...badhai
बहुत लाजबाब गज़ल!! आनन्द आया.
कहीं पर दुनिया दिलों को नहीं मिलने देती
कहीं पर दरम्यान आती है कौम की बात
कहीं पर अंगुलियाँ उठाते हैं जग के सरमाये
कहीं पर गैर तो कहीं अपने माँ- बाप ॥
.....Pyar ke paharedaar hote hain hazar magar pyar bhare dilon ko koi nahi rok paya hai..
Sundar prastuti....
Deepak Ji aur aap donon ko haardik shubhkamnayne.
"जहाँ पर ख्वाब हकीकत में बदलते हों
जहाँ पर सोच इंसान की न जहर उगलती हो ।।"
गुलाबी ग़ज़ल और प्रेरक सन्देश भी - अच्छा लगा दीपक जी को पढ़ना सुखद तथा अच्छा लगा.
agar aap ise gazal keh rahe hain deepak ji, to har lihaz se yeh gazal nahi hai.. aapko is par kaafi mehnat karni padegi
एक टिप्पणी भेजें