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बुधवार, 7 अप्रैल 2010

कल रात नींद न आई ......कविता ......नीशू तिवारी


कल रात नींद न आई
करवट बदल बदल कर
कोशिश
की थी सोने की
आखें खुद बा खुद भर आई
तुम्हारे न आने पर
मैं उदास होता हूँ जब
भी
ऐसा ही होता है मेरे साथ
फिर जलाई भी मैंने माचिस
और
बंद डायरी से निकली थी तुम्हारी तस्वीर
कुछ ही देर में बुझ गयी थी रौशनी
और उसमे खो गयी थी
तुम्हारी हसी
जिसे देखने की चाहत लिए मैं
गुजर देता था रातों को
सजाता था सपने तुम्हारे
तारों के साथ
चाँद से भी खुबसूरत
लगती थी तुम
हाँ तुम से जब कहता ये
सब
तुम मुस्कुराकर
मुझे पागल
कहकर कर चिढाती थी
मुझे अच्छा लगता था
तुमसे यूँ मिलना
जिसके लिए तुम लिखती ख़त
लेकिन
कभी वो पास न आया मेरे
और जिसे पढ़ा था मैंने हमेशा ही

8 comments:

Unknown ने कहा…

bahut khoob !

ananad banarasi ने कहा…

ap kavita kaphi pyari likhate hai.vo vashtvikta se judi hoti hai

हिन्दी साहित्य मंच ने कहा…

सरल शब्दों में प्यार को प्रदर्शित किया है आपने .....कुछ लाइन तो दिल तक उतर गयीं ..जैसे ये

मैं उदास होता हूँ जब
भी
ऐसा ही होता है मेरे साथ
फिर जलाई भी मैंने माचिस
और
बंद डायरी से निकली थी तुम्हारी तस्वीर
कुछ ही देर में बुझ गयी थी रौशनी
और उसमे खो गयी थी
तुम्हारी हसी
जिसे देखने की चाहत लिए मैं
गुजर देता था रातों को
सजाता था सपने तुम्हारे
तारों के साथ
चाँद से भी खुबसूरत
लगती थी तुम

जय हिन्दू जय भारत ने कहा…

neeshoo ji .....mere pass toh shabd hi nahi hai ....kis tarh se aap ki tariph karun.....bahut hi accha laga ..sukun mila ...jaise ki meri hi kahani aap ne likha ho kavita me ...badhai

Unknown ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Unknown ने कहा…

aap sabhi ka dhanyavdd....

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत बढ़िया नीशु!!

दिलीप ने कहा…

bahut sundar tanha dil ka udgaar...

http://dilkikalam-dileep.blogspot.com/