हमारा प्रयास हिंदी विकास आइये हमारे साथ हिंदी साहित्य मंच पर ..

रविवार, 7 मार्च 2010

आपत्ति - [प्रतीक माहेश्वरी]

ऋषि फ़ोन पर बात कर रहा था, अपनी गर्लफ्रेंड, प्रीती से..
प्रीती उसे कह रही थी कि वो सुबह जल्दी उठा करे और इसके फायदे और निशाचर होने के नुक्सान बता रही थी..
ऋषि पूरे तन्मयता के साथ सुन रहा था.. आधे घंटे तक सुना..

उनके इस रिश्ते के बारे में ऋषि की माँ को पता था और उन्हें कोई आपत्ति नहीं थी.. वो प्रीती को पसंद करती थी...
शाम को ऋषि ने माँ को बताया कि प्रीती ने कहा है कि सुबह जल्दी उठूं, तो कल से वो जल्दी उठेगा...
माँ ने सोचा, अच्छा है.. कम से कम इस रिश्ते से इसमें कुछ सुधार तो हो रहा है.. खुश हुई..

कहा - अगर जल्दी उठने की अच्छी आदत डाल ही रहे हो तो स्मोकिंग भी छोड़ दो..
ऋषि एकदम से पलटा और कहा - "माँ, अब फिर से अपना लेक्चर शुरू मत करो.." और उठकर चला गया..

अब माँ को आपत्ति हो रही थी.. उन्हें आभास हो रहा था.. एक अंधकारमय भविष्य का..
ऋषि को अपना बेटा कहने में संकोच होने लगा था... पर कुछ कर न सकीं...

1 comments:

Udan Tashtari ने कहा…

ये कथा अभी कुछ रोज पहले ही पढ़ी थी...