हमारा प्रयास हिंदी विकास आइये हमारे साथ हिंदी साहित्य मंच पर ..

मंगलवार, 2 मार्च 2010

गजल अनमोल रहा हूँ....-------[गजल]-------मृत्युंजय साधक

गजल
अनमोल रहा हूँ......
है
दिल की बात तुझसे मगर खोल रहा हूँ
मैं
चुप्पियों में आज बहुत बोल रहा हूँ
सांसों
में मुझे तुझसे जो एक रोज मिली थी
वो
खुश्बूयें हवाओं में अब घोल रहा हूँ
अब
तेरी हिचकियों ने भी ये बात कही है
मैं
तेरी याद साथ लिये डोल रहा हूँ
सोने
की और न चांदी की मैं बात करुंगा
मैं
दिल की ही तराजू पे दिल तोल रहा हूँ
चाहो
तो मुहब्बत से मुझे मुफ्त ही ले लो
वैसे
तो शुरु से ही मैं अनमोल रहा हूँ

5 comments:

निर्मला कपिला ने कहा…

अच्छी लगी ये रचना शुभकामनायें

Mithilesh dubey ने कहा…

बहुत ही खूबसूरत रचना लगी ।

हिन्दी साहित्य मंच ने कहा…

सुन्दर रचना के लिए आभार ।

जय हिन्दू जय भारत ने कहा…

कम शब्दो में बड़ी बात कर दी आपने ।

BHUPENDRA SINGH ने कहा…

एक अनमोल रचना...