बुधवार, 10 फ़रवरी 2010
मुहब्बत है क्या बस ऐसे ही एक पल में मैंने है जाना......[गजल]........................नलिन मेहरा
वो झुकी झुकी सी आँखें उसकी और लबों पे मुस्कान का खिल आना,
बस मेरी एक छुअन से उसका ख़ुद में सिमट जाना,
फिर हौले से खोलना झील सी आँखें और मेरा उनमें डूब जाना,
शरारत भरी निगाहों से फिर मेरे दिल में उसका उतर जाना,
रखना फिर मेरे कांधे पे सर अपना और उसका वो ग़ज़ल गुनगुनाना,
मुहब्बत है क्या बस ऐसे ही एक पल में मैंने है जाना.......
वो पायल की झंकार और उसकी चूड़ियों का खनखनाना,
चाल में मस्ती और उसका आँचल को लहराना,
सुनकर मेरी बातों को उसका हौले से मुस्कुराना,
मेरी हंसी मैं ढूँढना खुशी और मेरी उदासी मैं उदास हो जाना,
जो लगे चोट मुझे तो रो-रो के उसका बेहाल हो जाना,
मुहब्बत है क्या बस ऐसे ही एक पल में मैंने है जाना.......
वो करना शाम ढले तक बातें और थाम के हाथ मेरा सपने सजाना,
बहुत मासूमियत से उसका मुझे ज़िन्दगी का फलसफा समझाना,
जब हो लम्हा उदासी भरा तो उसका मुझे गले लगाना,
छाये जब अँधेरा गम का तो खुशी की किरन बन जाना,
मुहब्बत है क्या बस ऐसे ही एक पल में मैंने है जाना,
मुहब्बत है क्या बस ऐसे ही एक पल में मैंने है जाना.......
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11 comments:
नलिन जी , प्रेम में डूबकर आपने ये गजल लिखी है । कहीं कहीं ऐसा जरूर लगा है कि इस गजल में शब्द कुछ कमजोर हैं । अभिव्यक्ति बेहतरीन लगी ।
वो झुकी झुकी सी आँखें उसकी और लबों पे मुस्कान का खिल आना,
बस मेरी एक छुअन से उसका ख़ुद में सिमट जाना,
फिर हौले से खोलना झील सी आँखें और मेरा उनमें डूब जाना,
शरारत भरी निगाहों से फिर मेरे दिल में उसका उतर जाना,
रखना फिर मेरे कांधे पे सर अपना और उसका वो ग़ज़ल गुनगुनाना,
मुहब्बत है क्या बस ऐसे ही एक पल में मैंने है जाना......
नलिन भाई आपकी ये गजल दिल को छू गयी । आपको बधाई
वाह वाह , तह-ए-दिल से शुक्रिया । दिल तक उतर गयी यह रोमांटिक गजल ।
क्या बात है मौसम जैसा वैसी गजल । शुभान अल्ला ।
जय श्री राम
bahut hi sundar rachna.
मुहब्बत है क्या बस ऐसे ही एक पल में मैंने है जाना.......
मुहब्बत का एक पल ही तो है जो पूरी कायनात को समेट लेती है
बहुत खूबसूरत रचना
Bahut Khub...Kya kahane!!
Aabhar
http://kavyamanjusha.blogspot.com/
aah bahut khubsurat pyaar se bhari sachi rachna...
doston aap sabhi ka aur hindi sahitya manch ka main aabhar kin shabdon me prakat karun yeh samajh nahi aa raha. apne mujhe jaise mamuli shayar ki gazhal ko hindi sahitya manch aur apne dilon me jagah di...
aap sabhi ka bahut bahut dhanyawad.
Neesho ji ko tahe dil se shukriya.
apka
Nalin
www.nalin-mehra.blogspot.com
www.nalinmehra.co.nr
yeh rachna "manzar" naam ke kavita sangrah me "yaad ata hai mujhe aksar tera,pyaar se labrez seena makhmali daaman" jo ki hindi urdu ke prishidh shaayar Deepak sharma ji ne likhi hai,usse utari ya naql ki hui lagti hai. zara samay nikaal kar gaur kar le
kadiyan kamjor hain subject sahi hai kahi objective to kanhi subjective
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