मुस्कुराये जब वो तो सारी कायनात हंसा करती है,
पड़े उसके कदम जहाँ वो जगह जन्नत हुआ करती है,
दिल के सागर में एहसासों की एक लहर उठा करती है,
मेरी बदमाशियों पे जब वो "उफ़" कहा करती है
जो मुड़के देख ले बस एक नज़र तो ज़िन्दगी थमा करती है,
उसके हर कदम की आहट पे ऋतुएं बदला करती है,
मेरे बिखरे से लफ्जों की ग़ज़ल बना करती है,
सुनके मेरे काफिये जब वो "उफ़" कहा करती है,
जब भी मिल जाए वो तो खुशियाँ इनायत करती है,
अपनी प्यारी बातों से मन को छुआ करती है,
मेरी ज़िन्दगी की रहगुज़र को मंजिल मिला करती है,
सुनके मेरी दास्तान-ए-ज़िन्दगी जब वो "उफ़" कहा करती है,
खुदा ही जाने यह कैसी जुस्तुजू साथ मेरे हुआ करती है,
जितना रहता हूँ दूर उससे उतना ही वो मेरे करीब हुआ करती है,
यह कैसी कशिश उसके लफ्जों में हुआ करती है,
ज़िन्दगी से होती है मोहब्बत जब वो "उफ़" कहा करती है.
गुरुवार, 18 फ़रवरी 2010
जब वो "उफ़" कहा करती है--------[कविता]------नलिन मेहरा
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6 comments:
बहुत खूब नलिन भाई , बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति ।
नलिन जी आपने कविता को बखूबी शब्द में पिरोया है , बधाई ।
इतनी सुन्दर रचना कि वाह की जगह "उफ़" कहने को दिल चाहता है...बधाई!
http://kavyamanjusha.blogspot.com/
बहुत ही बढिया व मनभावन कविता लगी ।
ab to uff hi kahne ko ji chah raha hai ....bahut hi sundar likha hai........dil mein utar gayi gazal ki nafasat.
उफ़ ये रुबाइयां...क्या कहने.
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