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बुधवार, 17 फ़रवरी 2010

दोहे----------------[कवि कुलवंत सिंह]

मधुर प्रीत मन में बसा, जग से कर ले प्यार .
जीवन होता सफल है, जग बन जाये यार .

मधुर मधुर मदमानिनी, मान मुनव्वल मीत .
मंद मंद मोहक महक, मन मोहे मनमीत .

आज गुनगुना के गीत, छेड़ो दिल के तार .
दिल में घर बसा लो तुम, मुझे बना लो यार .

नन्हा मुझे न जानिये, आज भले हूं बीज .
प्रस्फुटित हो पनपूंगा, दूंगा आम लजीज .

पढ़ लिख कर सच्चा बनो, किसको है इंकार .
दुनियादारी सीख लो, जीना गर संसार .

संसारी संसारे में, रहे लिप्त संसार .
खुद भूला, भूला खुदा, भूले नहि परिवार .

फक्कड़ मस्त महान कवि, ऐसे संत कबीर .
फटकार लगाई सबको, बात सरल गंभीर .

नाम हरी का सब जपो, कहें सदा यह सेठ .
ध्यान भला कैसे लगे, खाली जिनके पेट .

सच की अर्थी ढ़ो रहा, ले कांधे पर भार .
पहुंचाने शमशान भी, मिला न कोई यार .

देश को नोचें नेता, बन चील गिद्ध काग .
बोटी बोटी खा रहे, कैसा है दुर्भाग .

लालच में है हो गया, मानव अब हैवान .
अपनों को भी लीलता, कैसा यह शैतान .

रावण रावण जो दिखे, राम करे संहार .
रावण घूमें राम बन, कलयुग बंटाधार .

मर्याद को राखकर बेच मान अभिमान .
कलयुग का है आदमी, धन का बस गुणगान .

मैं मैं मरता मर मिटा, मिट्टी मटियामेट .
मिट्टी में मिट्टी मिली, मद माया मलमेट .

छल कपट लूट झूठ सब, चलता जीवन संग .
सच पर अब जो भी चले, लगे दिखाता रंग .

कलयुग में मैं ढो़ रहा, लेकर अपनी लाश ।
सत्य रखूँ यां खुद रहूँ, खुद का किया विनाश ॥

भगवन सुख से सो रहा, असुर धरा सब भेज ।
देवों की रक्षा हुई, फंसा मनुज निस्तेज ॥

10 comments:

हिन्दी साहित्य मंच ने कहा…

हर एक दोहा एक से बढकर एक है , आभार आपका ।

जय हिन्दू जय भारत ने कहा…

बहुत खूब सभी लाजवाब लगे , बधाई आपको ।

Randhir Singh Suman ने कहा…

फक्कड़ मस्त महान कवि, ऐसे संत कबीर .
फटकार लगाई सबको, बात सरल गंभीर .nice

Mithilesh dubey ने कहा…

मैं मैं मरता मर मिटा, मिट्टी मटियामेट .
मिट्टी में मिट्टी मिली, मद माया मलमेट .

ये दोहा बहुत ही लाजवाब लगा ।

vandana gupta ने कहा…

bahut hi lajawaab dohe hain aur shayad inhein hindi sahitya manch ya kahin aur padha hai aapke dwara hi likhe huye hain wahan par bhi.

shyam gupta ने कहा…

मैं मैं मरता मर मिटा, मिट्टी मटियामेट .
मिट्टी में मिट्टी मिली, मद माया मलमेट .

मधुर मधुर मदमानिनी, मान मुनव्वल मीत .
मंद मंद मोहक महक, मन मोहे मनमीत.

---सुन्दर दोहे--सुन्दर अनुप्रास छटा. --हां कुछ दोहे ताल व लय में नहीं सिमट्ते, ठीक करने योग्य हैं, शायद त्रिकल, चौकल की कमी है। यथा--३,४,७,१०,

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

सभी दोहे बहुत बढ़िया है बधाई आपको।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

सीख देते हुए बहुत अच्छे दोहे....बधाई

Unknown ने कहा…

kulwant bahi bahut khub

Unknown ने कहा…


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