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बुधवार, 13 जनवरी 2010

समन्वय-----( डाo श्याम गुप्त )

आशा का उत्साह का गति का,

रहे समन्वय , तो जीवन है |

तजें निराशा, तेज़ न दौड़ें ,

निरुत्साह का दामन छोड़ें ;

जो न कर सका यथा समन्वय,

कहाँ सफलता उस जीवन में ||

4 comments:

shikha varshney ने कहा…

पांच पंक्तियों में जीवन दर्शन सिखा दिया आपने....नमन आपकी लेखनी को.

shyam gupta ने कहा…

धन्यवाद शिखा जी ,स्पन्दन पर, आपका लेख का व वह वैचारिक धरातल, एसी ही स्थिति है जो स्वाधीनता से पहले हमारे लोगों ने अन्ग्रेज़ी व अन्गरेज़ी इतिहास पढकर उनकी कमज़ोरियों , कमियों,अत्याचारों, आदतों व अपनी कमियों के बारे में जान कर स्वाधीनता की नींव डालने का कार्य किया था.
--मेरे ब्लोग -- http://shyamthot.blogspot.com ( the world of my thoughts.....)

Mithilesh dubey ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना
बहुत बहुत आभार
इस उम्दा रचना के लिए बधाई .........

Unknown ने कहा…

bahut hi accha likhte hai sir ji aap