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शनिवार, 30 जनवरी 2010

आजादी हमें खड्ग, बिना ढाल, साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल (आलेख )- प्रमेन्द्र प्रताप सिंह


आज महात्‍मा गांधी की पुण्‍यतिथि है, सर्वप्रथम श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूँ। कल दैनिक जागरण मे साबरमती के संत गीत के सम्‍बन्‍ध मे एक लेख था और आज के संस्‍करण मे उसी से सम्‍बन्‍ध चर्चा पढ़ने को मिली। महात्मा गांधी के सम्मान में गाए जाने वाले गीत..दे दी आजादी हमें खड्ग, बिना ढाल, साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल.. आज के समय मे कितना उचित है यह जानना जरूरी है ?

महात्‍मा गांधी जी ने देश की आजादी मे अहम योगदान दिया इसे अस्‍वीकार करना असम्‍भव है पर यह गीत वास्‍तव मे देश की आजादी मे अपना बलिदान देने वाले लोगो को कमतर बताता है। आज स्‍वयंआकालन करने की जरूरत है कि क्‍या आजादी हमें खड्ग, बिना ढाल के ही मिली है ? इमानदारी से कहे तो गीत लिखने वाले भी इसे स्‍वीकार नही करेगे।

भारत की स्‍वतंत्रता की लड़ाई 1857 और उससे भी पहले छोटी मोटे तौर पर लड़ी जा रही थी, शहीद मंगल पांडेय, झांसी की रानी लक्ष्‍मी बाई और अगिनत ऐसे लोगो ने अपने जान की परवाह न करते हुये भारत माता को आजाद करने के लिये हर सम्‍भव प्रहार किया। गांधी जी के भारत आने के बाद की परिस्थिति दूसरी थी, गांधी जी 1915 मे भारत आये और 1916 से विभिन्‍न आंदोलनो मे भाग लिया। आज हम अपने बच्‍चो तो जो पढ़ा रहे हे कि हमे आजादी बिना खडग और ढाल के मिली है इससे तो यही सिद्ध करना चाहते है कि गांधी से पहले स्‍वतंत्रता के नाम पर सिर्फ मजाक हो रहा था? और गांधी जी के आने के बाद यथावत स्‍वातंत्रता की लड़ाई बिना खड्ग और ढ़ाल के लड़ी गई ?

जो सम्‍मान गांधी का हो रहा है उसी प्रकार का सम्‍मान हर स्‍वातंत्रता सेनानी के साथ होना चाहिये। अगर इतिहासकारो की माने तो गांधी युग न होता तो 20 साल पहले भारत आजाद हो चुका होता और भारत विभाजन की नौबत ही नही आती। गांधी जी का यह गुणगान सिर्फ गांधी वादियो को ही सुहा सकता है, उन्हे ही इसे गाना चाहिये। अगर देश की आत्‍मा के साथ यह गान बहुत बड़ा मजाक है। यह गाना तो सीधे सीधे यही कह रहा है कि गांधी बाबा एक तरफ और सारे शहीद क्रान्तिकारी एक तरफ और तब पर भी गांधी भारी ?क्‍या यही सही है ?

5 comments:

Mithilesh dubey ने कहा…

प्रमेन्द्र जी आपसे किसी हद तक सहमत हूँ कि ये कहा जाये कि बिना हथियार उठाये ही हमें आजादी मिली तो ये सही ना होगा, परन्तु आप ये भी नहीं कह सकते कि गांधी जी की अंहिसा नीति काम ना आयी , उस समय भी दो ऐसे वर्ग बंटे थे जिनका मूल उदेश्य आजादी ही थी , हाँ उनके विचार जरुर अलग थे । इसलिए हमें किसी के योगदांन को कम नहीं आंकना चाहिए , और जहाँ तक गीत की बात है तो आज भी बहुत से लोग हैं जो इस सिद्धान्त को मानते है , और विरोध पहले भी था आज भी है , जो लोग इस विचार धारा के अन्तर्गत आते हैं वे पसंद करते है, जो नही आते वे विरोध करते है, लेकिन उपयोगिता आज भी है । ऐसे महान व्यक्तित्व वाले पुरुष को सत-सत नमन् ।

हिन्दी साहित्य मंच ने कहा…

बापू को श्रद्धाजंलि ।

Pramendra Pratap Singh ने कहा…

मित्र मिथलेश जी, यहाँ गांधी जी के प्रयासो को कमतर आकने की बात नही कि जा रही है, गांधी के प्रयोगो को मै असफल भी भी नही कह रहा हूँ किन्‍तु जो तथ्‍य आज हमारे सामने है कि गांधी जी के अंहिसा के कारण ही हमे आजादी मिली यह बिल्‍कुल गलत है।

आजादी की लड़ाई मे भारत माता के सभी बेटे लगे हुये थे किसी एक को पूरा का पूरा श्रेय देना बिल्‍कुल ठीक नही है, जब परिवार मे सभी का योगदान हो तो सभी को श्रेय देने मे क्‍या हर्ज है। आज लगता है कि अंहिसा से सब ठीक हो सकता है तो प्रशासन क्‍यो लाठी चार्ज और गोली चलवाती है है ?

Unknown ने कहा…

प्रमेन्द्र जी आलेख में आपने बापू का तुलनात्मक अध्ययन किया है जो किसी भी तरह से जायज नहीं है । ये बात सही है कि आजादी की लड़ाई में भगत सिहं जैसे व्यक्तित्व वाले लोंगो ने अहम योगदान दिया जो की गांधी सिद्धान्त के विपरीत था , लेकिन इससे गांधी जी कि नीति को कमतर नहीं आंका जाना चाहिए।

जय हिन्दू जय भारत ने कहा…

ये मिथिलेश और नीशू का दिमाग खराब लग रहा है । प्रमेन्द्र जी आपकी बात सही है ।