संक्षिप्त परिचयः-
कवि ' आशुतोष ओझा जी '
आपका जन्म भृगु मुनि की तपोभूमि और राजा बलि की कर्मभूमि बलिया ( उत्तर प्रदेश ) में १ सितंबर सन १९८३ को हुआ । आपकी प्रारंभिक शिक्षा सरस्वती शिशु मंदिर में हुई । स्नातक की शिक्षा जिले के सतीश चंद्र डिग्री में प्राप्त की । तत्पश्चात आपने देश की राजधानी से पत्रकारिता में स्नात्तकोत्तर किया।
पत्रकारिता की शुरूआत आकाशवाणी में कैपुअल एनांउसर से हुई । आपने राष्ट्रीय समाचार पर लोकमत के जरिये अखबार में कदम रखा । २००७ में राजस्थान पत्रिका से नई पारी शुरू की । वर्तमान में दिल्ली के समाचार पत्र " आज समाज " में बतौर उपसंपादक कार्यरत हैं।
आपके अनुसार कविताः- "वही है , जिसमें सरोकार है , चाहे वो किसी भी रूप में हो । प्रेम , द्वेष , न्याय , अन्याय , विद्रोह, श्रद्धा , देशभक्ति इत्यादि ।।"
संपर्कः श्री जगमोहन मिश्र
बी-३०२, हारमोनी आपर्टमेंट
सेक्टर-२३, द्वारका दिल्ली
मो-०९८७३७९७५९९
आशुतोष जी की दो कविताएं
1-स्वप्नः एक उधेड़बुन
स्वप्न देखता हूँ
उन्हें बुनता हूँ ।
कभी - कभी उसी में
उलझ जाता हूँ।
दम घुटता है
जोर से चिल्लाता हूँ।
चारों ओर बहुत शोर है
' मूक ' आवाज दब जाती है
अन्ततः
स्वयं से ' द्वंद' करता हूँ
कभी जीतता हूँ
कभी हारता हूँ
सुख और दुख
दोनों देखे,
सदैव दुख
भारी रहा।
'खुशी आई थी
कुछ समय के लिए
फिर नहीं लौटी।
अब भी इंतजार है
इसलिए
स्वप्न देखता हूँ
उन्हें बुनता हूँ।।
2- पैबंद
उनके दरख्तों को दरकते देख
खुश होता हूँ।
लेकिन
अपने पैबंद छुपाता हूँ।
बलूच और सिंध बन जाय
दिली इच्छा है
लेकिन,
तेलंगाना , बुंदेलखण्ड , गोरखालैण्ड
विदर्भ......के लिए
किसी के मरने
हिंसक आन्दोलन
और
तोड़-फोड़ का
खुद ही, इंतजार करता हूँ।
दरअसल यही
डिप्लोमेसी और डेमोक्रेसी है
विश्व में सबसे बड़ी
इस सम्मान और बोझ को
सहता हूँ,
इसलिए
हर पैबंद छुपाता हूँ।।
मंगलवार, 19 जनवरी 2010
आशुतोष जी की दो रचनाएं " स्वपनः एक उधेड़बुन " और " पैबंद "
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9 comments:
आशुतोष जी आपकी प्रथम रचना में गजब की कल्पनाशीलता है । शब्द प्रवाह और कम शब्दों में कविता को सौन्दर्य प्रदान किया है । दूसरी रचना में समसमायिकता का समायोजन बहुत ही प्रभावित करता है । आपको हार्दिक आभार ।
हिन्दी साहित्य मंच पर आपका बहुत बहुत स्वागत है । हमारे प्रयास को आगे बढ़ाने में आपने अपनी भागीदारी दी इसके लिए यह मंच आपका आभारी है । आपकी कविताएं विषय विशेष पर गहरी छाप छोड़ती है । कल्पना और सामायिकता का समायोजन कविता में नजर आया है । अपनी अभिव्यक्ति को कविता के माध्यम से पाठक तक पहुंचाने में पूरी तरह से सफल हुए है । आपको हार्दिक बधाई ।
बहुत ही सुन्दर दोनों कविताए लाजवाब हैं !!!
सर जी , आपकी दोनों कविताएं बहुत ही अच्छी लगी । आपकी स्वप्नः एक उधेड़बुन कविता बहुत ही प्रभावशाली लगी । ऐसे ही काव्य से हमें रू-ब-रू कराते रहिये । बहुत बहुत बधाई आपको ।
काव्य सबसे सरल तरीका है अपनी भावनाओं को कहने का और आपकी रचनाएं सफल रही हैं इसमें । दमदार प्रस्तुति दर्ज करायी है आपने । ऐसे ही सुन्दर रचना हमें आगे भी पढ़ने को मिलेगी ऐसी कामना करता हूँ । आपको धन्यवाद देता हूँ ।
aapki dono rachnaayein bahut prabhavit karti hain
guru dono kavitayen dhansoo hai. mubarak ho.
rajshekhar mishra
mahan aur kaljayi kavitayen dandva se hi upajti hain. sangharsh ke es swar ko abhivyakti dete rahen. kavtaon me bhav prabal hai.
subhkamnao samet.
alok kumar
आपको साधुवाद..क्योंकि अभिव्यक्ति संप्रेषण को आगे बढ़ाती है...आप इसमें सफल रहे...
स्वप्न
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स्वप्न से साक्षात्कार
बार-बार
देता है
लक्ष्यों को आधार
कभी मनोरंजन,
हास परिहास का बहाना
कभी बनता है,
क्रांति का ठिकाना
वो स्वप्न ही है
जिसने दिया जन्म
सह्रसों आविष्कारों को
सुख और दुख से इतर
स्वप्न का विशाल संसार है...
अंतर दिन रात का
झोपड़ी महल का
चौक और द्वार का
खेत का खलिहान
कल कारखानों का
हाट का दुकान का..
हार, जीत के द्वंद से इतर
बुनते रहे जाल
स्वप्न का
स्वप्न सर्जक है श्रष्टि का
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इसिलिए कहता हूं स्वप्न देखना अनवरत जारी रखें....
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राधेश्याम दीक्षित
इंडिया न्यूज, दिल्ली
09654472627
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