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मंगलवार, 12 जनवरी 2010

परी

बचपन में
माँ रख देती थी चाकलेट
तकिये के नीचे
कितना खुश होता
सुबह-सुबह चाकलेट देखकर।
माँ बताया करती
जो बच्चे अच्छे काम
करते हैं
उनके सपनों में परी आती
और देकर चली जाती चाकलेट।
मुझे क्या पता था
वो परी कोई और नहीं
माँ ही थी।









कृष्ण कुमार यादव

6 comments:

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत भावपूर्ण...माँ ही तो परी होती है!

vijay kumar sappatti ने कहा…

yaadav ji , man ko bhigo diya aapne

vijay

Pushpendra Singh "Pushp" ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना
बहुत बहुत आभार

मन-मयूर ने कहा…

के.के. साहब, मेरे दिल की बात छीन ली आपने. ....मुबारकवाद.

मन-मयूर ने कहा…

के.के. साहब, मेरे दिल की बात छीन ली आपने. ....मुबारकवाद.

हिंदी साहित्य संसार : Hindi Literature World ने कहा…

भावुक व सार्थक कविता.