अनजाने रिश्ते का एहसास,बयां करना मुश्किल था ।दिल की बात को ,लबों से कहना मुश्किल था ।वक्त के साथ चलते रहे हम ,बदलते हालात के साथ बदलना मुश्किल था ।खामोशियां फिसलती रही देर तक,यूँ ही चुपचाप रहना मुश्किल था । सब्र तो होता है कुछ पल का ,जीवन भर इंतजार करना मुश्किल था ।वो दूर रहती तो सहते हम , पास होते हुए दूर जाना मुश्किल था ।अनजाने रिश्ते का एहसास ,बयां करना मुश्किल था ।
गुरुवार, 7 जनवरी 2010
अनजाने रिश्ते का एहसास ---(मिथिलेश दुबे)
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4 comments:
वाह, बहुत सुन्दर दुबे जी !
खामोशियां फिसलती रही देर तक,
यूँ ही चुपचाप रहना मुश्किल था ।
बहुत सुन्दर.
खामोशियां फिसलती रही देर तक,
यूँ ही चुपचाप रहना मुश्किल था
Kya baat kahi hai ...MASHAALLAH bhaut khoob
tumhari kavitao ki to me fan hu mithilesh bhai...bohot sundar...
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