पुरस्कृत रचना ( द्वितीय स्थान, हिन्दी साहित्य मंच द्वितीय कविता प्रतियोगिता)सजनि! तुम सुर में सजो तो गीत गाऊं।
तुम ढलो संगीत में तो स्वर सजाऊं।
सजनि तुम.................
प्रीति का हर रंग,
सजनि तुम................
सजनि तुम......................
शूरवीरों के सभी ,
रंग कलियों के हों,
मन की उमंग में।
प्रीति भंवरे सी हो,
तन की उमंग में।
गंध फ़ूलो की लिये ,
हर अन्ग में।
प्रीति बन उर में,
खिलो तो गुनुगुनाऊं।
सजनि तुम.................
श्वांस में मन की,
बनो निश्वांस तुम।
आस के हर रंग ,
का विश्वास तुम।
प्रीति का हर रंग,
तन-मन में लिये।
मीत बन मन में-
बसो तो मुस्कुराऊं।
सजनि तुम................
प्रीति के तो बहुत,
गाये हैं तराने।
चाहता हूं वतन के,
स्वर गुनगुनाने।
तुम को हो स्वीकार तो-
वे स्वर सजाऊं ।
मन बसी जो,रागिनी,
तुम को सुनाऊं।
सजनि तुम......................
देश की खातिर,
हुए कुर्बान कितने।
वे प्रणम्य शहीद ,और-
गुमनाम कितने
गीत गाते गुनगुनाते,
मुस्कुराते ।
हंसते-हंसते,शूलियों-
पर झूल जाते ।
शूरवीरों के सभी ,
विस्म्रत तराने ।
चाहता हूं मैं,सभी-
वो गीत गाने ।
8 comments:
बहुत ही सुन्दर रचना शयाम जी। बहुत-बहुत वधाई आपको.........
डं श्याम जी को इस सुन्दर रचना के लिये बधाई
बहुत खुब श्याम जी, लाजवाब रचना। बधाई
प्रीति के तो बहुत, गाये हैं तराने।
चाहता हूं वतन के, स्वर गुनगुनाने।
बहुत खूब कहा है श्याम जी ... बधाई |
वाह.....बहुत ही सुन्दर.....प्रेमगीत के साथ देशभक्ति का भाव...वाह !!
aap sabhee ko dhanyvad--prem naheen to desh kahaan, desh naheen to prem kahaan?
बहुत खुब श्याम जी, लाजवाब रचना। बधाई
bahut hi sunder rachna hai. Mai bhi isme aana chahti hu, kaise please bataiye.
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