शाम की छाई हुई धुंधलीचादर से ढ़क जाती हैं मेरी यादें , बेचैन हो उठता है मन, मैं ढ़ूढ़ता हूँ तुमको , उन जगहों पर , जहां कभी तुम चुपके-चुपके मिलने आती थी , बैठकर वहां मैं महसूस करना चाहता हूँ तुमको , हवाओं के झोंकों में , महसूस करना चाहता हूँ तुम्हारी खुशबू को , देखकर उस रास्ते को सुनना चाहता हूँ तुम्हारे पायलों की झंकार को , और देखना चाहता हूँ टुपट्टे की आड़ में शर्माता तुम्हारा वो लाल चेहरा , देर तक बैठ मैं निराश होता हूँ , परेशान होता हूँ कभी कभी , आखें तरस खाकर मुझपे, यादें बनकर आंसू उतरती है गालों पर , मैं खामोशी से हाथ बढ़ाकर , थाम लेता हूं उन्हें टूटने से , इन्ही आंसूओं नें मुझे बचाया है टूटने से , फिर मैं उठता हूं फीकी मुस्कान लिये एक नयी शुरूआत करने ।
प्रस्तुति-
नीशू
बुधवार, 30 दिसंबर 2009
शाम
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3 comments:
नीशू जी बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है । बधाई और नये साल की शुभकामनायें
फिर मैं उठता हूं
फीकी मुस्कान लिये
एक नयी शुरूआत करने ।
अच्छी रचना है...!!! नव वर्ष की शुभकामनाऐं ...
बहुत सुन्दर रचना
बहुत बहुत आभार
इस उम्दा रचना के लिए बधाई
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