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बुधवार, 23 दिसंबर 2009

जब रुखसते मुकाम हो

ऐ हसीं ता ज़िंदगी ओठों पै तेरा नाम हो |
पहलू में कायनात हो उसपे लिखा तेरा नाम हो |


ता उम्र मैं पीता रहूँ यारव वो मय तेरे हुश्न की,
हो हसीं रुखसत का दिन बाहों में तू हो जाम हो |


जाम तेरे वस्ल का और नूर उसके शबाब का,
उम्र भर छलका रहे यूंही ज़िंदगी की शाम हो |


नगमे तुम्हारे प्यार के और सिज़दा रब के नाम का,
पढ़ता रहूँ झुकता रहूँ यही ज़िंदगी का मुकाम हो |


चर्चे तेरे ज़लवों के हों और ज़लवा रब के नाम का,
सदके भी हों सज़दे भी हों यूही ज़िंदगी ये तमाम हो |


या रब तेरी दुनिया में क्या एसा भी कोई तौर है,
पीता रहूँ , ज़न्नत मिले जब रुखसते मुकाम हो |


है इब्तिदा , रुखसत के दिन ओठों पै तेरा नाम हो,
हाथ में कागज़-कलम स्याही से लिखा 'श्याम' हो ||


प्रस्तुति--- ड‍ा० श्याम गुप्ता

5 comments:

Pushpendra Singh "Pushp" ने कहा…

बहुत खूब अच्छी गज़ल बेहतरीन शेर
चर्चे तेरे ज़लवों के हों और ज़लवा रब के नाम का,
सदके भी हों सज़दे भी हों यूही ज़िंदगी ये तमाम हो |
बधाई स्वीकार करें

Mithilesh dubey ने कहा…

umda rachna .

मनोज कुमार ने कहा…

ग़ज़ल की रवानगी दिल ले गयी.....!

निर्मला कपिला ने कहा…

बहुत उमदा गज़ल बधाई

सहसपुरिया ने कहा…

बहुत खूब, ज़िंदाबाद...