यह मेरा निर्झर मन है ,जो झर झर झर झर झर बहता
अविरल गति से बहते बहते ,जीवन की कविता कहता
जीवन क्या है ,मलयानिल -पुरवाई बहती रहती है
सुख दुःख आते रहते हैं ,यह दुनिया चलती रहती है
जीवन क्या है मंद मंद धुन पर ढलता संगीत है
जीवन लय है ताल है सुर है ,जीवन सुन्दर गीत है
प्रियतम-प्रिय का मिलना जीवन , साँसों का चलना है जीवन
मिलना और बिछुड़ना जीवन,जीवन हार ,जीत भी जीवन
कोइ कहता नर से जीवन,कोइ कहता नारी जीवन
नर-नारी जब सुसहमत हों,आताही तब घर में जीवन
जीवन तो बस इक कविता है,कवी जिसमें भरता है जीवन
सारा जग यदि कवी बनजाये,पल-पल मुस्काये ये जीवन
गीत का बनना, फूल का हंसना,रात का आना,दिन काजाना
नव कलियाँ अवगुंठन खोलें, भंवरों का मंडराना जीवन
चींटी-दल का पंक्ति में चलना,कमल दलों का खुलना-मुंदना
चलते -चलते रुकता खरहा ,मृग शावक का रुक-रुक चलना
जीवन तो है स्वयं सन्जीवनि,मरना भी तो इक नव-जीवन
मृत्यु का सन्देश यही है, फिर-फिर आना ही है जीवन
दुःख आये दुःख लगता जीवन,सुख में महकाए ये जीवन
जैसा मन का भाव रहे जो ,वैसा ही बन जाए जीवन
योगी का तो योग है जीवन,भोगी को तो भोग ही जीवन
माया अज्ञानी का जीवन ,मुक्ति-ज्ञान ज्ञानी का जीवन
मुक्ति का पाना है जीवन,भागावंलय होजाना जीवन
मुक्ति का सन्देश यही है ,फिर से मिले सुहाना जीवन
मंगलवार, 20 अक्टूबर 2009
झर -झर जीवन ---------( डा श्याम गुप्ता )
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7 comments:
बेहद खूबसूरत रचना। बहुत-बहुत बधाई
उत्कृष्ट रचना!
जीवन तो बस इक कविता है,कवी जिसमें भरता है जीवन
सारा जग यदि कवी बनजाये,पल-पल मुस्काये ये जीवन
sundar
सुन्दर पोस्ट है।
सभी को धन्यवाद
यह रचना जीवन्त मानवीय द़ष्टिकोण की नई परिकल्पना के संवेदनशील पहलुओं को दिखाती है।
लाजवाब रचना है बधाई
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