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मंगलवार, 6 अक्तूबर 2009

मेरे प्यार के बदले----------------(किशोर कुमार खोरेन्द्र)

-मेरे प्यार के बदले
तुम मुझे
अपने मन मे रख लो
तुम्हारे अश्रु सारे पी जाउंगा
निहार लूँगा मै तुम्हे
जब देखोगी तुम दर्पण
तुम मुझे अपने नयन मे रख लो



-मेरे प्यार के बदले
तुम मुझे अपने स्मरण मे रख लो
तुम्हारी कल्पनाओ मे स्मृतियों का रंग बन जाऊँगा
आह्लादित हो जाउंगा तुम्हारी गरीमा से
तुम मुझे अपने शरण मे रख लो



-मेरे प्यार के बदले
तुम मुझे अपने सपनो के आँगन के कण -कण मे रख लो
बिछुड़ने न दूंगा प्रणय-पल को स्वप्न मे भी
मिट जाऊंगा मै भी संग तुम्हारे
तुम मुझे अपने निज समर्पण मे रख लो



-देह कहा अमर है
आजमरण ,कल नूतन बचपन है
मेरे प्यार के बदले
हे प्रिये -
तुम मुझे -अपने साथ भावी -
अजन्मे
शाश्वत -नव अवतरण मे रख लो



-मै हूकुछ -कुछ अधमी
तुम पवित्र परम साध्वी
जल दूषित हू परन्तु
संग तुम्हारे पावन गंगा हू
हे प्रिये
एक बूंद सा मुझे -अपने आचमन मे रख लो



-तुम -...हो ...
धरती पर भागती बादलो की प्रतिछाया
तुम ...हो ...
यह प्रकृति और नित बदलती माया
दृश्य तुम
और मै दृष्टा
मेरे प्यार के बदले
मुझे अब
एक साक्षी -विरह मिलन का
हरदम
रख लो

4 comments:

Mithilesh dubey ने कहा…

बहुत खुब। उम्दा रचना

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

बहुत सुन्दर. पता नहीं क्यों, महादेवी वर्मा याद आ गईं.

मनोज कुमार ने कहा…

गहरे संबंधों को उजागर करती अच्छी रचना। बधाई।

Unknown ने कहा…

bahut hi acchi rachna hai .