'चूक' हुई या 'खोट' थी कोई आखिर क्यूँ नाकाम हुए।
नेक नीयत रखी थी हमने, जाने क्यूँ बदनाम हुए।।
प्यार की पौध लगाकर हमने खाद वफ़ा की डाली थी,
आज दरख़्त वो मुरझाया है, ऐसे क्यूँ अंजाम हुए।।
यूँ तो तेरी जानिब से भी प्यार ही प्यार मिला हमको,
बंजर आज हुआ क्यूँ रिश्ता, गुलशन क्यूँ शमशान हुए।।
छोटी-छोटी बातें, यादें, सपने कहते-सुनते थे,
पहले जैसा हर मंजर है, फिर हम क्यूँ अंजान हुए।।
प्यार मुहब्बत की बातें अब बेमानी सी लगती हैं,
हर सू जख़्म के ताने-बाने, मंजर ये क्यूँ आम हुए।।
'चूक' हुई या 'खोट' थी कोई आखिर क्यूँ नाकाम हुए।
नेक नीयत रखी थी हमने, जाने क्यूँ बदनाम हुए।।
शुक्रवार, 4 सितंबर 2009
" जाने क्यूँ " - नजर- ए- गजल (पंकज तिवारी जी )
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6 comments:
'चूक' हुई या 'खोट' थी कोई आखिर क्यूँ नाकाम हुए।
नेक नीयत रखी थी हमने, जाने क्यूँ बदनाम हुए।।
बहुत ही जोरदार शेर लगा । आपकी गजल बहुत ही उच्च स्तर की लगी । खासकर शब्द गहरे प्रभाव छोड़ रहे हैं । शानदार गजल के पकंज जी आपको बहुत बहुत बधाई ।
वाह वाह बहुत खूब गजल पढ़कर मजा आगया । बेहतरीन प्रस्तुति आपके द्वारा । बधाई
बहुत ही सुन्दर गजल। आपने लाजवाब शब्दो का मिश्रण किया है जिससे आपकी इस गजल ने शमाँ बाँध दी। बहुत खुब......
प्यार की पौध लगाकर हमने खाद वफ़ा की डाली थी,
आज दरख़्त वो मुरझाया है, ऐसे क्यूँ अंजाम हुए।।
आहा!!!क्या लाजवाब शे'र है। बधाई।
सुन्दर गज़ल........और ये लाइन तो कमाल की-
नेक नीयत रखी थी हमने, जाने क्यूँ बदनाम हुए।।
बहुत ही प्यारी गजल है।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
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