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शनिवार, 13 जून 2009

व्यंग्य /ठीकरा

ठीकरा

भारतीय राजनीति में आजकल एक शब्द बहुत ही प्रचलित होता जारहा है ,‘ठीकरा’ ।अब ‘ठीकरा’ बेचारा एसी निर्जीव तुच्छ वस्तु है जिसे हर कोई एक दूसरे के सिर पर ही फोडने के लिऐ आमादा रहता है। मजे की बात ये है कि ठीकरे को भी कभी कोई गुरेज नहीं , आपकी मर्जी आए जब चाहे जहाँ फोडो....आप चाहे अपने पडोसी के सिर पर फोडे या फिर दूसरे मोहल्ले किसी भी अनजान व्यक्ति के सिर पर फोडे...। बस शर्त ये ही है कि बाद की स्थिति का मुकाबला करने की आपमें क्षमता होनी चाहिऐ।‘ठीकरे’ की नियती तो फूटना ही है कहीं भी फूटेगा....लेकिन फूटेगा जरूर...!
हालाँकि शाब्दिक बाणों पर सवार होकर यह ‘ठीकरा’ कब किसके द्वारा किसके सिर पर फोडा जाऐगा इसका पता अच्छे- अच्छों को भी अन्तिम समय तक नहीं चल पाता है । इसका प्रत्यक्ष प्रमाण हमारे सामने ही है कहीं जाने की भला क्या जरूरत है। जब से लोकसभा के चुनाव में अडवाणी ब्रीगेड धराशाई हुई है तभी से उन्हीं के लोग हाथों में ‘ठीकरा’ लिऐ घूम रहे हैं कि कहाँ और किसके माथे पर फोडें.......? अडवाणी जी के सपनों को जो ग्रहण लगा है उसकी चिन्ता किसी को नहीं है........बस लगे हैं सब हार के कारणों का पोस्टमार्टम करने......और ढूंढ़ रहें हैं कोई ऐसा मजबूत सिर जिस पर इस ठीकरे को फोडा जाऐ ।
पार्टी अध्यक्ष हैं कि किसी का सिर ‘ठीकरे ’के सही निशाने पर आने ही नहीं देते हैं या यूं कहिऐ कि अभी सबके सामने कुछ कहना ही नहीं चाहते हैं क्योंकि घर की बात घर में ही रहे तो अच्छा है ।हाँ उन्होंने एक काम जरूर किया है कि थानेदार की तरह फरमान जरूर जारी कर दिया है कि कोई भी नेता सबके सामने मुँह नहीं खोलेगा......।अभी पोस्टमार्टम की रिपोर्ट आनी बाकी है रिपोर्ट आने पर मंथन किया जाऐगा....और इस मंथन की मथनी के चारों ओर जो मक्खन आऐगा उसकी जाँच करने के बाद ही कुछ कहा जा सकेगा......।
यशवंत सिन्हा हैं कि चुनाव के बाद से ही हाथों में ठीकरा लिऐ घूम रहें कि किसके सिर पर फोडूं....परन्तु राजनाथ ने सभी संभावित सिरों को फिलहाल सुरक्षा दे दी है। मगर सिन्हा हैं कि सब्र ही नहीं करपाऐ और दे दिया सभी पदों से स्तीफा....।जसवन्त सिंह हैं कि पहले से ही नहा घो कर तैयार बैठे हैं और शब्दों की जुगाली कर रहे हैं।
ऐसे में राज के नाथ ने भी सभी नेताओं के नकेल डालने का अच्छा तरीका निकाला है और फरमान जारी कर दिया कि कोई भी नेता घर के बाहर किसीसे कुछ नही कहेगा । अब यह एक अलग बात है कि अभी तो घर के अन्दर भी कोई सुनने वाला ही नहीं है तभी तो सभी अपने मन का गुबार निकालने की ताक में है लेकिन अब सभी के मुँह पर अनुशासन का ताला लगाने वालों ने ही लोकतन्त्र की दुहाई देते हुऐ चुनाव के समय एक-दूसरे के ऊपर कीचड उछालकर खूब जुबान चलाई थी लेकिन अब तू भी चुप मैं भी चुप......?
अब लोकतन्त्र तो केवल देश के लिऐ है उनकी पार्टी के लिऐ कोई है.....?मुझे तो लगता है कि अब इस पार्टी वालों को बी.जे.पी.से भारतीय जनता पार्टी नहीं बल्कि बहुत झगडालू पार्टी कहना चाहिऐ जो एक चुनावी हार को भी नहीं पचा पा रहे हैं।मेरे देश का रखवाला तो पहले ही ऊपर वाला ही था लेकिन अब इन राजनेताओं का रखवाला भी ऊपर वाला ही है क्योंकि अब तो वो ही है एक मात्र नाव क खिवैया...........?


डॉ.योगेन्द्र मणि