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गुरुवार, 11 जून 2009

प्रथम कविता प्रतियोगिता की सर्वश्रष्ठ कविता - पुकार " कवि कुलवंत सिंह जी की "

हिन्दी साहित्य मंच की प्रथम कविता प्रतियोगिता के सफल समापन के पश्चात द्वितीय कविता प्रतियोगिता की घोषणा जल्द ही की जायेगी ।

प्रथम कविता प्रतियोगिता में साहित्य प्रेमियों ने जिस तरह से बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया । वह प्रशंसनीय है । इस कविता प्रतियोगिता में हमें उम्मीद से अधिक रचनाएं प्रप्त हुई । परन्तु दुखद बात यह रही कि कई प्रतिभागियों ने अपनी रचना हिन्दी फांट में नहीं भेजी । जिससे वह रचनाएं अस्वीकार कर दी गयी । अतः आप सभी से अनुरोध है कि अपनी रचना हिन्दी फांट में ही भेजें ।
प्रथम कविता प्रतियोगिता में आयी सभी कविताओं का प्रकाशन हिन्दी साहित्य मंच पर क्रमिक रूप से किया जायेगा । सर्वप्रथम विजेता कविताओं का प्रकाशन किया जा रहा है । प्रथम कविता प्रतियोगिता में प्रथम स्थान पर रही कविता " पुकार " कवि कुलवंत सिंह जी की आज प्रकाशित की जा रही है । इस कविता ने प्रथम चरण में ( 10.70) के साथ सातवें स्थान पर रही । द्वितीय चरण में यह कविता (9.70) अंको के साथ प्रथम स्थान पर रही । (अधिकतम अंक १० थे द्वितीय चरण में ) । और सर्वश्रेष्ठ कविता चुनी गयी ।

जीवन परिचय - कवि कुलवंत सिंह
जन्म - ११ जनवरी , रूड़की , उत्तराखण्ड
शिक्षा- बी.ई ( आई आई टी , रूड़की ) , एमबीए( इग्नू से)
प्रकाशित पुस्तकें -निकुंज( कविता संग्रह), चिरंतन ( कविता संग्रह ), कई प्रमुख पत्रिकाओं में लेख और कविताएं प्रकाशित ।
सम्मान- कवि भूषण सम्मान , अभिव्यक्ति सम्मान २००७, भारत गर्व सम्मान, बाबा अंबेडकर मेडल , दिल्ली ।
रूचियां- मंचीय कार्यक्रम , कवि सम्मेलन, कविता लेखन , इत्यादि ।
व्यवसाय - नौकरी
संपर्क- २ डी , बद्रीनाथ बिल्डिंग, अनुशक्ति नगर,मुंबई -४००९४
ई-मेल - singhkw@barc.gov.in / kavi.kulwant@gmail.com

पुकार - सर्वश्रेष्ठ कविता

सहिष्णुता की वह धार बनो
पाषाण हृदय पिघला दे ।
पावन गंगा बन धार बहो
मन निर्मल उज्ज्वल कर दे ।
कर्मभूमि की वह आग बनो
चट्टानों को वाष्प बना दे ।
धरती सा तुम धैर्य धरो
शोणित दीनों को प्रश्रय दे ।
ऊर्जित अपार सूर्य सा दमको
जग में जगमग ज्योति जला दे ।
पावक बन ज्वाला सा दहको
कर दमन दाह कंचन निखरा दे ।
अति तीक्ष्ण धार तलवार बनो
भूपों को भयकंपित रख दे ।

पीर फकीरों की दुआ बनों
हर दरिद्र का दर्द मिटा दे ।
शौर्य पौरुष सा दिखला दो
दमन दबी कराह मिटा दे ।

अंबर में खीचित तड़ित बनो
जला जुल्मी को राख कर दे ।
सिंहों सी गूंज दहाड़ बनो
अन्याय धरा पर होने न दे ।

बन रुधिर शिरा मृत्युंजय बहो
अन्याय धरा पर होने न दे ।
अपमान गरल प्रतिकार करो
आर्त्तनाद कहीं होने न दे ।

बन प्रलय स्वर हुंकार भरो
शासक को शासन सिखला दे ।
पद दलितों की आवाज बनो
मूकों का चिर मौन मिटा दे ।

कर असि धर विषधर नाश करो
सत्य न्याय सर्वत्र समा दे ।
सृष्टि सृजन का साध्य बनो
विहगों को आकाश दिला दे ।
बन शीतल मलय बहार बहो
हर जीवन को सुरभित कर दे ।

3 comments:

निर्मला कपिला ने कहा…

कवि कुलवम्त जी को बहुत बौत बधाई बहुत सुन्दर रचना हरउर आपको भी इस प्रयास के लिये बहुत बहुत बधाई और धन्य्वाद्

Shamikh Faraz ने कहा…

kulwant ji ko pratiyogita me pratham aane ke lie badhai. agr aap ko waqt mile to mera blog bhi dekhen.
www.salaamzindadili.blogspot.com

दिपाली "आब" ने कहा…

agar yeh kavita vijayi hai, to aapko judges badalne ki jarurat hai, sakht jarurat...
kulwant ji (nothing personal)
maaf kijiyega par kavita mein kuch bhi aisa nahi hai jo man ko chhue.