हमारा प्रयास हिंदी विकास आइये हमारे साथ हिंदी साहित्य मंच पर ..

मंगलवार, 19 मई 2009

शंखनाद [ एक कविता ] - निर्मला कपिला जी

ये कैसा शँख नाद
ये कैसा निनाद
नारी मुक्ति का !
उसे पाना है अपना स्वाभिमान
उसे मुक्त होना है
पुरुष की वर्जनाओ़ से
पर मुक्ति मिली क्या
स्वाभिमान पाया क्या
हाँ मुक्ति मिली
बँधनों से
मर्यादायों से
सारलय से
कर्तव्य से
सहनशीलता से
सहिष्णुता से
सृ्ष्टि सृ्जन के
कर्तव्यबोध से
स्नेहिल भावनाँओं से
मगर पाया क्या
स्वाभिमान या अभिमान
गर्व या दर्प
जीत या हार
सम्मान या अपमान
इस पर हो विचार
क्यों कि
कुछ गुमराह बेटियाँ
भावोतिरेक मे
अपने आवेश मे
दुर्योधनो की भीड मे
खुद नँगा नाच
दिखा रही हैँ
मदिरोन्मुक्त
जीवन को
धूयें मे उडा रही हैं
पारिवारिक मर्यादा
भुला रही हैं
देवालय से मदिरालय का सफर
क्या यही है तेरी उडान
डृ्ग्स देह व्यापार
अभद्रता खलनायिका
क्या यही है तेरी पह्चान
क्या तेरी संपदायें
पुरुष पर लुटाने को हैँ
क्या तेरा लक्ष्य
केवल उसे लुभाने मे है
उठ उन षडयँत्रकारियों को पहचान
जो नहीं चाहते
समाज मे हो तेरा सम्मान
बस अब अपनी गरिमा को पहचान
और पा ले अपना स्वाभिमान
बँद कर ये शँखनाद
बँद कर ये निनाद

3 comments:

हिन्दी साहित्य मंच ने कहा…

निर्मला जी , आपकी यह रचना बेहद प्रभावशाली है , आपने स्त्री को बिंदु बना कर गहराई से विस्तार स्वरूप दिया है । शब्द सशक्त लगे ।शुभकामनाएं

Unknown ने कहा…

शंखनाद एक सुन्दर रचना लगी आपकी निर्मला जी ।

Science Bloggers Association ने कहा…

jeevan aur satya ke karib rachna hai. BADHAAYI.

-Zakir Ali ‘Rajnish’{ Secretary-TSALIIM & SBAI }