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बुधवार, 27 मई 2009

क्या पाया - कविता ( निर्मला कपिला )

क्या पाया
ये कैसा शँख नाद
ये कैसा निनाद
नारी मुक्ति का !
उसे पाना है
अपना स्वाभिमान
उसे मुक्त होना है
पुरुष की वर्जनाओ़ से
पर मुक्ति मिली क्या
स्वाभिमान पाया क्या
हाँ मुक्ति मिली
बँधनों से
मर्यादायों से
सारलय से
कर्तव्य से
सहनशीलता से
सहिष्णुता से
सृ्ष्टि सृ्जन के
कर्तव्यबोध से
स्नेहिल भावनाँओं से
मगर पाया क्या
स्वाभिमान या अभिमान
गर्व या दर्प
जीत या हार
सम्मान या अपमान
इस पर हो विचार
क्यों कि
कुछ गुमराह बेटियाँ
भावोतिरेक मे
अपने आवेश मे
दुर्योधनो की भीड मे
खुद नँगा नाच
दिखा रही हैँ
मदिरोन्मुक्त
जीवन को
धूयें मे उडा रही हैं
पारिवारिक मर्यादा
भुला रही हैं
देवालय से मदिरालय का सफर
क्या यही है तेरी उडान
डृ्ग्स देह व्यापार
अभद्रता खलनायिका
क्या यही है तेरी पह्चान
क्या तेरी संपदायें
पुरुष पर लुटाने को हैँ
क्या तेरा लक्ष्य
केवल उसे लुभाने मे है
उठ उन षडयँत्रकारियों को पहचान
जो नहीं चाहते
समाज मे हो तेरा सम्मान
बस अब अपनी गरिमा को पहचान
और पा ले अपना स्वाभिमान
बँद कर ये शँखनाद
बँद कर ये निनाद्


9 comments:

शिव शंकर ने कहा…

sundar kavits

Unknown ने कहा…

नारी पर केन्द्रित सुन्दर कविता निर्मला जी ।

Unknown ने कहा…

नारी पर केन्द्रित सुन्दर कविता निर्मला जी ।

प्रवीण शुक्ल (प्रार्थी) ने कहा…

नमस्कार निर्मला जी बहुत ही अच्छी और दिल को झझकोर देने वाली लाईने लिखी है . आत्म मंथन के लिए विवश करती है
धन्यबाद

Unknown ने कहा…

निर्मला जी , बहुत ही सुन्दर रचना । बधाई

Mithilesh dubey ने कहा…

bahut hi sundar rachna . badhai

Yogendramani ने कहा…

वास्तविकता को छूती हुई बहुत ही सार्थक एवं सशक्त रचना के लिऐ बधाई ।

Yogendramani ने कहा…

वास्तविकता को छूती हुई बहुत ही सार्थक एवं सशक्त रचना के लिऐ बधाई ।

ktheLeo (कुश शर्मा) ने कहा…

सुन्दर शब्दों में सामायिक विषय पर विचारोत्तेजक रचना है।
आदर सहित अभिवादन।