हे!
तुम आना
ख़ुशियां लाना
और
बांटना भी
तुम मुस्कुराना
और
सबको मुस्कुराने की
वजह देना
हे!
तुम बोलना
बक-बक-बक-बक
पर किसी का
दिल न दुखाना
हे!
तुम्हें ये धरती मिलेगी
जिसे हम सबने
मिलकर उजाड़ा
सारा पानी सोख लिया
सारे पेड़ उखाड़ लिए
सारा तेल धुआं बनाया
सारी बिजली लुटा दी
जब तुम आना
पेड़ उगाना
पानी बचाना
प्रकृति पर जान देना
तुम्हारी ज़िंदगी
प्रकृति का ही तो वरदान है
हे!
तुम आना
8 comments:
वर्षा जी आपका हिन्दी साहित्य मंच पर बहुत बहुत स्वागत है । हमारे प्रयास में आपका योगदान सराहनीय है ...........इसके लिए हम आपके आभारी हैं । आपकी एक सकारात्मक संदेश देती हुई बेहद सुन्दर बनी है ।आपने कविता में सरल शब्दों का प्रयोग करते हुए अपनी बात को गंभीरता से प्रस्तुत किया । शुभकामनाएं ।
bahut hi accha likha hai aap ne .sandesh deti hui aap ki ye rachna . badhai aap ko .
bahut hi sunder rachna hai . asha hai kilog isse samghege . badhai
vrsha ji . aapne rachna ke madhyam se sunder bhav prastut kiye hai . saral shabdon me aapne sab kuch aasani se kah diya . bahut bahut subhkamnayen.
वर्षा जी , साहित्य मंच पर आपकी प्रथम कविता पढ़कर बहुत ही खुशी है । बेहद सशक्त रूप में आपने भाव प्रस्तुत किये । धन्यवाद
आपकी यह रचना से हम सभी को सीख मिलती है , अगर हम अपनाना चाहें तब । सुन्दर रचना के बहुत बधाई आपको ।
स्नेह एवं ममत्व का सुंदर अंकन।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
आपकी यह रचना प्रेरणादायक लगी । बेहतरीन कविता के लिए धन्यवाद
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