थोड़ा-थोड़ा ही सा सब कुछ सब कोई कर रहे हैं......
और परिणाम.....??
बहुत कुछ.......!!
सभी थोड़ा-थोड़ा-सा धुंआ उड़ा रहे हैं......
और सबका मिला जुलाकर.........
हो जाता है ढेर सारा धुंआ......!!
थोडी-थोडी-सी चोरी कर रहें हैं सभी.....
और क्या ऐसा नहीं लगता कि-
सारे के सारे चोर ही हों.....!!
थोडी-थोडी-सी गुंडा-गर्दी होती है....
और परिणाम.....??
बाप-रे-बाप सारी दुनिया तबाह हो जैसे.....!!
थोडी-थोडी-सी छेड़खानी होती है सब जगह....
और सारी धरती पर की......
सारी स्त्रियों और लड़कियों की-
निगाहें चलते वक्त गड़ी होती हैं.....
जमीं के कहीं बहुत ही भीतर....!!
थोड़ा-थोड़ा-सा बलात्कार होता है सब जगह
और सारी की सारी पृथ्वी ही.....
दबी और मरी जाती है आदमी के इस
हैवानियत और जघन्यता भरे पाप से......!!
थोड़ा-थोड़ा ही ज़ुल्म करते हैं लोग
गरीबों और मजलूमों पर अपनी ताकत के बाईस
और ऐसा लगता है कि पृथ्वी पर.....जोर-जबरदस्ती
और ज़ुल्म के अतिरिक्त कुछ भी नहीं......!!
और अंत में यही कि.....
थोड़ा-थोड़ा-सा पाप ही कर रहे हैं सब के सब......
और धरती की सारी नदिया भी यदि गंगा बन जाएँ.....
तो भी रत्ती भर पाप भी
कम नहीं कर सकती ये आदम का......!!
थोड़ा-थोड़ा-सा सब कुछ ही....
मिल-जुल कर इत्ता हुआ जा रहा है......
कि उपरवाला भी इसके बोझ से.....
जैसे मरा ही जा रहा है.....!!
और उसे भी आदम से छुटकारे का
कोई उपाय नज़र नहीं आ रहा है.....!!!!
और परिणाम.....??
बहुत कुछ.......!!
सभी थोड़ा-थोड़ा-सा धुंआ उड़ा रहे हैं......
और सबका मिला जुलाकर.........
हो जाता है ढेर सारा धुंआ......!!
थोडी-थोडी-सी चोरी कर रहें हैं सभी.....
और क्या ऐसा नहीं लगता कि-
सारे के सारे चोर ही हों.....!!
थोडी-थोडी-सी गुंडा-गर्दी होती है....
और परिणाम.....??
बाप-रे-बाप सारी दुनिया तबाह हो जैसे.....!!
थोडी-थोडी-सी छेड़खानी होती है सब जगह....
और सारी धरती पर की......
सारी स्त्रियों और लड़कियों की-
निगाहें चलते वक्त गड़ी होती हैं.....
जमीं के कहीं बहुत ही भीतर....!!
थोड़ा-थोड़ा-सा बलात्कार होता है सब जगह
और सारी की सारी पृथ्वी ही.....
दबी और मरी जाती है आदमी के इस
हैवानियत और जघन्यता भरे पाप से......!!
थोड़ा-थोड़ा ही ज़ुल्म करते हैं लोग
गरीबों और मजलूमों पर अपनी ताकत के बाईस
और ऐसा लगता है कि पृथ्वी पर.....जोर-जबरदस्ती
और ज़ुल्म के अतिरिक्त कुछ भी नहीं......!!
और अंत में यही कि.....
थोड़ा-थोड़ा-सा पाप ही कर रहे हैं सब के सब......
और धरती की सारी नदिया भी यदि गंगा बन जाएँ.....
तो भी रत्ती भर पाप भी
कम नहीं कर सकती ये आदम का......!!
थोड़ा-थोड़ा-सा सब कुछ ही....
मिल-जुल कर इत्ता हुआ जा रहा है......
कि उपरवाला भी इसके बोझ से.....
जैसे मरा ही जा रहा है.....!!
और उसे भी आदम से छुटकारे का
कोई उपाय नज़र नहीं आ रहा है.....!!!!
8 comments:
भूतनाथ जी " थोड़ा थोड़ा सा सब कुछ " आपकी यह रचना गजब का व्यंग्य कर रही है । बहुत ही सुन्दर रचना लगी । धन्यवाद
आपकी रचना बेहद सुन्दर है , जिस तरह से आपने प्रश्नों को उठाया वह कबीले तारीफ है । बधाई
sach hai julm aur paap ke badhte bojh se prithavi ke saath hum sabhi bhi dab rahe hai .umda aur satya .
ati sunder rachna ke liye bdhai aap yoon hi thhoda thhoda kar ke kahenge to shayad kisi na kisi par to is thhode kaa asar hogakahane ka andaaz achhaa laga bdhai
Bhoot nath ji
aapki kavita ne ek bhaut gahra sach likha hai
sabhi kahte hain todha hi to kiya kya farq padega magar sabka todha bhaut ho jata hai aur
bahut achhi prbhaavshali rachna
bahut hi accha laga padh ke
एक संदेश देती यह रचना अच्छी लगी ।
भावपूर्ण रचना को आपने सरल शब्दों में ढ़ाल कर मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया है । शुभकामनाएं
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