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शुक्रवार, 3 अप्रैल 2009

कभी इन्कार चुटकी मे,कभी इक़रार चुटकी मे















मिसरा-ए-तरह "कभी इन्कार चुटकी मे,कभी इक़रार चुटकी मे" पर कही गई शेष ग़ज़लें हम पेश कर रहे हैं. बहुत ही बढ़िया आयोजन रहा. ये सारा कुछ श्री द्विज जी के आशीर्वाद से हुआ और आप सभी शायरों के सहयोग से जिन्होंने इस मिसरे पर इतनी अच्छी ग़ज़लें कही. मै चाहता हूँ कि तमाम पाठक थोड़ा समय देकर इतमिनान से सारी ग़ज़लें पढ़े और पसंदीदा अशआर पर दाद ज़रूर दें.ये तरही मुशायरा "नसीम भरतपुरी" को आज की ग़ज़ल की तरफ़ से श्रदाँजली है.

1.पवनेन्द्र पवन

उछल कर आसमाँ तक जब गिरा बाज़ार चुटकी में
सड़क पर आ गए कितने ही साहूकार चुटकी में

जो कहते थे नहीं होता कभी है प्यार चुटकी में
चुरा कर ले गये दिल करके आँखें चार चुटकी में

कभी है डूब जाती नाव भी मँझधार चुटकी में
घड़ा कच्चा लगा जाता कभी है पार चुटकी में

पहाड़ी मौसमों-सा रँग बदलता है तेरा मन भी
कभी इन्कार चुटकी मे,कभी इक़रार चुटकी मे

बाकी आज की ग़ज़ल पर पढ़ें...

4 comments:

Unknown ने कहा…

सतपाल भाई आपका प्रयास बहुत ही सराहनीय है । इतने सारे लोगों को एक विषय पर पढ़कर आंनदित हुए । आपसे साथ यात्रा बहुत ही मनभावन लगी ।

सुबह मैंने कुछ भाग पढ़लिये थे समय न होने के कारण अभी अपनी राय दे पाया ।

हिन्दी साहित्य मंच ने कहा…

सतपाल जी सर्वप्रथम आपका हिन्दी साहित्य मंच पर स्वागत है । आपका प्रयास बहुत ही सुन्दर रहा । इतने सारे लोगों को पढ़वाया । धन्यवाद

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

"कभी इन्कार चुटकी मे,कभी इक़रार चुटकी मे"
समस्या-पूर्ति या तरही-मिसरा अपनी प्रतिभा दिखाने का अवसर प्रदान करते हैं।
इस तरही-मिसरे पर यह बेहतरीन गजल है।
हिन्दी साहित्य मंच पर सुन्दर गजल प्रकाशित करने के लिए, धन्यवाद।

निर्मला कपिला ने कहा…

सत पाल जी कल नेट मे कुछ प्राबलम आ गयी थी इस लिये आज आज छुत्की मे आप्की नज़्म पढ्ली बहुत खूब्सूरत अभिव्यक्ति है
उछल कर आसमाँ तक जब गिरा बाज़ार चुटकी मे
सडक पर आ गये कितने साहूकर चुटकी मे
बाज़ार पर एक सुन्दर चुटकी ली है बधाई