हमारा प्रयास हिंदी विकास आइये हमारे साथ हिंदी साहित्य मंच पर ..

गुरुवार, 19 मार्च 2009

किसान

सूखी हुई पत्तियों को,

बिखेरती चिड़िया,

चर्र-चर्र की आती आवाज,

हवा के एक झोंके से,


महुए की गंध चारों तरफ फैलती है ,



करौदें के पेड़ पर ,

बैठा बुलबुल चहकता हुआ

प्यार बिखरेता है ।


खेतों की हरियाली,

सूख चली है ,

सूरज की गर्म किरणों के बीच,

तपता किसान,

हाथों में हसिया लिए,

चेहरे पर मुस्कान की रेखा खींचता है,


पसीने की बूँदों से तर-बतर उसका शरीर,

उसे परेशान नहीं करता ,


वह तो खुश है अपनी फसल को देख ,

अपने जीवन को देख,


पेड़ की छावं में छाया नहीं जीवन की ,

फिर भी

उसी की आड़ में बैठ ,

मदमस्त है,


प्रसन्न है ।

3 comments:

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" ने कहा…

बहुत ही सुन्दर कविता........

Science Bloggers Association ने कहा…

संतोष सबसे बडा सुख है, यही हमारे किसानों की पहचान है।

neelima garg ने कहा…

nice poem ....