लाशें जो बिछी हैं इंसानों की,
दिल दहल जाय ऐसे दृश्यों की
आखिर क्यों इंसानों में भेद है ऐसा ,
क्यों कौम -संप्रदाय की दुरी है ऐसा ,
ये नजारा तो देखो ,
देखकर जरा गौर करो,
ये लहु मिलने चले हैं ऐसे ,
जैसे चले हैं बरसों पुरानी
दूरियां मिटाने को l
इन लहु को बहुत दुःख है कि
इंसान, इंसान को न पहचानता ,
ये क्यों है ऐसी खाई ,
मनुष्य से मनुष्यता के अंत का l
इन लहु को बहुत दुःख है कि
काश हमें वह शक्ति होता,
कि अगर यह काम हमसे हो जाता,
तो मिटा देते ये फासला,
इन्सानों के दिलों दिमाग का l
इन लहु को बहुत दुःख है कि
इंसान, ईश्वर ने बनाया तुझे ,
सर्वश्रेष्ठ - संपन्न बनाया तुझे,
यह कमी क्यों रह गयी तुझमें ,
बस खुद को पहचानने का
ये लहु कहती है कि
आज हमारा मिलान होगा ऐसा ,
जैसे रग - रग में घुल जाने का ,
इंसान के दिल तो न मिल पाये मगर,
पर आज देना है , पैगाम ये मुहब्बत का l
आखिर क्यों इंसानों में भेद है ऐसा ,
क्यों कौम -संप्रदाय की दुरी है ऐसा ,
ये नजारा तो देखो ,
देखकर जरा गौर करो,
ये लहु मिलने चले हैं ऐसे ,
जैसे चले हैं बरसों पुरानी
दूरियां मिटाने को l
इन लहु को बहुत दुःख है कि
इंसान, इंसान को न पहचानता ,
ये क्यों है ऐसी खाई ,
मनुष्य से मनुष्यता के अंत का l
इन लहु को बहुत दुःख है कि
काश हमें वह शक्ति होता,
कि अगर यह काम हमसे हो जाता,
तो मिटा देते ये फासला,
इन्सानों के दिलों दिमाग का l
इन लहु को बहुत दुःख है कि
इंसान, ईश्वर ने बनाया तुझे ,
सर्वश्रेष्ठ - संपन्न बनाया तुझे,
यह कमी क्यों रह गयी तुझमें ,
बस खुद को पहचानने का
ये लहु कहती है कि
आज हमारा मिलान होगा ऐसा ,
जैसे रग - रग में घुल जाने का ,
इंसान के दिल तो न मिल पाये मगर,
पर आज देना है , पैगाम ये मुहब्बत का l
हमें डर है कि ये तपती धरती सोख लेगी मुझे ,
ये सूरज कि तेज तपन विलीन कर देगी मुझे ,
फिर भी बेतहाशा मिलने चले हैं हम ,
जूनून ये मुहब्बत का कभी न होगा कम,
परन्तु
यह शायद पहली बार हुआ है ,
ये धरती, ये आसमां , ये सूरज, ये चन्द्रमाँ,
आज इनकी भी जोर है हमें मिलाने का l
ये सूरज कि तेज तपन विलीन कर देगी मुझे ,
फिर भी बेतहाशा मिलने चले हैं हम ,
जूनून ये मुहब्बत का कभी न होगा कम,
परन्तु
यह शायद पहली बार हुआ है ,
ये धरती, ये आसमां , ये सूरज, ये चन्द्रमाँ,
आज इनकी भी जोर है हमें मिलाने का l