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बुधवार, 21 जुलाई 2010

आतंकवाद ...........(कविता)...........मीना मौर्या


न देखने लायक था आज वही मंजर देखा ,


खुशियों से भरे घर में कुदरत का कहर बरसते देखा ,


आतंक के आतंकियों से एक माँ के लाल को,


आखिरी साँस तक लड़ते हुए मरते देखा .


वर्षों के ख्वाब होने वाले थे पूरे,


ऐसे सपनों को क्षण भर में बिखरते देखा ,.


जीवन के दूसरे सफर की उसने की थी तैयारी ,


उसके सीने में लगते हमने खंजर देखा ,


खून के रंग में रंगा लाल- लाल खंजर देखा,


एक माँ की आँखों में आँसूओं का समंदर देखा .


दूल्हे के शेहरे का फूल यूँ ही था बिखरा ,


उन फूलों को दुल्हन को अर्थी पर करते अर्पण देखा.


रोते बिखलते बूढ़े एक बाप को,


जवान बेटे का ढोते हमने मैय्यत देखा ,


देखने लायक था आज वही मंजर देखा ,


आतंक के डर  से सबका रूह कापते देखा ...