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शुक्रवार, 11 जून 2010

राष्ट्रवादी.................श्यामल सुमन

तनिक बतायें नेताजी, राष्ट्रवादियों के गुण खासा।
उत्तर सुनकर दंग हुआ और छायी घोर निराशा।।

नारा देकर गाँधीवाद का, सत्य-अहिंसा क झुठलाना।
एक है ईश्वर ऐसा कहकर, यथासाध्य दंगा करवाना।
जाति प्रांत भाषा की खातिर, नये नये झगड़े लगवाना।
बात बनाकर अमन-चैन की, शांति-दूत का रूप बनाना।
खबरों में छाये रहने की, हो उत्कट अभिलाषा।
राष्ट्रवादियों के गुण खासा।।

किसी तरह धन संचित करना, लक्ष्य हृदय में हरदम इतना।
धन-पद की तो लूट मची है, लूट सको तुम लूटो उतना।
सुर नर मुनि सबकी यही रीति, स्वारथ लाई करहिं सब प्रीति।
तुलसी भी ऐसा ही कह गए और तर्क सिखाऊँ कितना।।
पहले "मैं" हूँ राष्ट्र "बाद" में ऐसी रहे पिपासा।
राष्ट्रवादियों के गुण खासा।।

आरक्षण के अन्दर आरक्षण, आपस में भेद बढ़ाना है।
फूट डालकर राज करो, यह नुस्खा बहुत पुराना है।
गिरगिट जैसे रंग बदलना, निज-भाषण का अर्थ बदलना।
घड़ियाली आंसू दिखलाकर, सबको मूर्ख बनाना है।
हार जाओ पर सुमन हार की कभी न छूटे आशा।
राष्ट्रवादियों के गुण खासा।।

"सूत्र" एक है "वाद" हजारों, टिका हुआ है भारत में।
राष्ट्रवाद तो बुरी तरह से, फँस गया निजी सियासत में।।

5 comments:

Unknown ने कहा…

वर्तमान राजनीति की विसंगतियो को परत दर परत उघाङती सशक्त रचना...कितनी विडम्बना की बात है मशाल लेकर चलने वाले हाथों के जेहन में अन्धकार भरा है फिर भी वे समाज का नेतृत्व कर रहे है........सशक्त,सार्थक व सन्देश देती रचना हेतु बधाई।।

आचार्य उदय ने कहा…

आईये पढें ... अमृत वाणी !

दिलीप ने कहा…

ek jwalant kavita...

समयचक्र ने कहा…

बढ़िया रचना...आभार

आदेश कुमार पंकज ने कहा…

बहुत सुंदर और प्रभावशाली
सुंदर रचना के लिए बधाई