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गुरुवार, 8 अप्रैल 2010

नारी .....(कविता)..... कवि दीपक शर्मा


कितनी बेबस है नारी जहां में
न हंस पाती है, न रो पाती है
औरों की खुशी और गम में
बस उसकी उमर कट जाती है

नारी से बना है जग सारा
नारी से बने हैं तुम और हम
नारी ने हमें जीवन देकर
हमसे पाए अश्रु अपरम
इन अश्रु का ही आंचल पकड़े
बस उसकी उमर कट जाती है

नारी का अस्तित्व देखो तो ज़रा
कितना मृदु स्नेह छलकाता है
कभी चांदनी बन नभ करे शोभित
कभी मेघों सी ममता बरसाता है
कुछ दी हुई उपेक्षित श्वासों में
बस उसकी उमर कट जाती है

सदियों को पलटकर देखो तो
हर सदी ने यही दोहराया है
नारी को जी भर लूटा है
नारी को खूब सताया है

इस विश्व में स्वयं को तुम
अगर मानव कहलवाना चाहते हो
नारी को पूजो , पूजो नारी को
जो फिर जीवन पाना चाहते हो।

5 comments:

हिन्दी साहित्य मंच ने कहा…

आप का हिंदी साहित्य मंच पर स्वागत है ...नारी के बारे में जितना भी लिखा जाये वो कम है .....कविता के माध्यम से आपने जो चित्र प्रस्तुत किया वह काबिले तारीफ है...सहयोग देने के लिए धन्यवाद ...

Unknown ने कहा…

bahut hi acchi rachna nari par ..deepak ji badhai ho...

Amitraghat ने कहा…

"अच्छी रचना........"

डॉ० डंडा लखनवी ने कहा…

सत्य्म्‌‍ एवं सुन्दरम्‌

जय हिन्दू जय भारत ने कहा…

kya baat hai bahut sundar....