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रविवार, 3 जनवरी 2010

सरकारी दफ्तर

सरकारी दफ्तर
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जी हाँ यह सरकारी दफ्तर है
यहाँ का प्रत्येक कर्मचारी अफसर है

दफ्तर के मुख्य द्वार पर
दो सीढ़ी पार कर
कभी- कभी मिलेगा
एक ऊँघता हुआ प्राणी
कहने को यह
चतुर्थश्रेणी कर्मचारी है
फिर भी प्रथम है.

इसी के पास है
दफ्तर की चाबी
कुछ भी कराना हो
इसके पास जाइऐ
मुट्ठी गर्म कीजिऐ
और रास्ता पूछ जाइऐ .

यह सब समझा देगा
आपको धीरे से बतला देगा
फाइल में बीस का नोट दबाओ
सामने वाली टेबल पर चले जाओ

फिर कोने वाले के पास जाना
फाइल में पचास का नोट दबाना
और चुपचाप खडे हो जाना
आपको
कुछ कहने की आवश्यकता नहीं
वे सब संभाल लेगें
आपको
फाइल सहित ऊपर वाले कमरे में
पहुँचा देगें.
वहाँ सो का नोट रखना
वे हस्ताक्षर कर देगें.

यदि कहें कल आना
तो समझना
काम उनकी सीमा से बाहर है
फाइल अभी आगे बढ़ानी है
फाइल का थोडा वजन बढाओ
दूसरे दिन फाइल सुरक्षित ले जाओ .


आप कहेंगे,
कल क्यों..?
क्योंकि यहाँ के जो अफसर हैं
उनके घर पर ही दफ्तर हैं
अधिकांश काम
वे घर पर ही निपताते हैं
यहाँ तो मात्र
अधिकारी होने का
आभास दे जात हैं.


आप सोचते होंगे
यह तो सरासर
रिश्वतखोरी है
जी नहीं
बेचारे ईमानदारी से
कर्तव्य निभाते हैं
तभी तो
फाइलों में बडे-बडे बाँध
मगर जमीन पर
झोंपडे नजर आते हैं
करोडों का विकास
फाइलों में होता है
और बाढ़ में बह जाता है
लेकिन जनता के हिस्से का
विकास लकीरों में रह जाता है
और इनके बैंक बेलेंस का बोझ
बढ़ता ही जाता है ॥

डॉ. योगेन्द्र मणि

1 comments:

Mithilesh dubey ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना
बहुत बहुत आभार
इस उम्दा रचना के लिए बधाई